किसी रात्रि में जब आप सिर को ऊपर आकाश की ओर उठाते हैं तो क्षितिज से क्षितिज (horizon to horizon) तक आपको तारों से भरा विशाल समुद्र दिखाई देता है। अब अगर हमें पता करना हो कि कौनसा तारा कब और कहां है, कौनसा ग्रह वर्तमान में कहां दिखाई देगा या कहें चंद्रमा की वर्तमान स्थिति क्या है तो हमें इस खुले आकाश को जो हमें पृथ्वी पर खड़े दिखाई दे रहा है, उसके कुछ स्पष्ट विभाजन (Zodiac Division) करने होंगे।
तभी हम कागज में लिखकर बता पाएंगे कि किसी खास समय पर कोई आकाशीय पिण्ड कहां पर थी। इसके लिए हमें आकाश के टुकड़े करने पड़ेंगे। हर टुकड़े की परास निर्धारित करनी पड़ेगी। हमारे ज्योतिषियों के समक्ष भी यही चुनौती थी। ऐसे में आकाश का विभाजन किया गया। हम जो वर्तमान में ज्योतिष की गणित पढ़ रहे हैं उसमें आकाश (Zodiac) के तीन स्तर पर विभाजन दिखाई देते हैं।
एक विभाजन नक्षत्र विभाजन है इसमें आकाश कुल 27 टुकड़ों में बंटा दिखाई देता है। हालांकि ये 27 विभाजन भी मोटे तौर पर ही हैं, इससे आगे के विभाजन हमें नक्षत्रों के चरण के रूप में मिलते हैं।
चूंकि हर नक्षत्र चार चरण का होता है, ऐसे में आकाश का विभाजन नक्षत्र चरण के तौर पर 108 भागों तक पहुंच जाता है। ये 108 भाग हमने चंद्रमा के साथ चलते हुए प्राप्त किए हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि 27 नक्षत्र चंद्रमा के गोचर का हिस्सा हैं।
इसी कारण पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि ये नक्षत्र चंद्रमा की 27 पत्नियां हैं। हर पत्नी के पास चंद्रमा एक दिन के लिए रहता है। गणनाओं में भी हम देखते हैं कि करीब 23 से 25 घंटे तक एक नक्षत्र का काल होता है।
यह समय चंद्रमा का किसी एक नक्षत्र में बिताया गया समय होता है। गो अंतरिक्ष (Zodiac) को कहा जाता है और गोकुल वह क्षेत्र है जो हमें आंखों से दिखाई देने वाला 360 डिग्री का आकाश है। इस गोकुल में हर नक्षत्र को अपना हिस्सा जो 13 डिग्री और 20 मिनट का है, मिला हुआ है।
दूसरा विभाजन राशियों के आधार पर है। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन राशियां आकाश के एक एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं। हर राशि को सवा दो नक्षत्रों जितना स्पेस मिला हुआ है। कुल 360 डिग्री का आकाश 12 राशियों में विभाजित होकर हर टुकड़ा 30 डिग्री का बनाता है। आकाश के इन दोनों विभाजनों में आधार नक्षत्र ही रहता है।
आकाश का तीसरा विभाजन भावों के आधार पर होता है। जमीन पर खड़े होकर मैं क्षितिज की ओर देखता हूं तो में मुझे सूर्योदय के समय दिन का पहला लग्न उदित होता हुआ मिलता है। बस यहीं से मैं पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा ऐसे तीस तीस डिग्री से गिनते हुए बारह भावों में 360 डिग्री प्राप्त कर लेता हूं।
अगर हम नक्षत्र वर्ष के अनुसार गणना करेंगे तो पाएंगे कि सूर्य हर नक्षत्र में 13.333 दिन रहता है। इस तरह 27 नक्षत्रों से गुजरने में उसे 360 दिन का समय लगेगा। शास्त्रो में कहा भी गया है कि “नक्षत्राणी संवत्सर: प्रतिष्ठानी” यानी संवत्सर की प्रतिष्ठा नक्षत्र में है।
अब इन तीनों प्रकार के विभाजनों में कई प्रकार के करेक्शन आते हैं। भाव के आधार पर जो विभाजन किया गया है, उसमें मुझे पृथ्वी की चार प्रकार की गतियों और सूर्य की एक प्रकार की गति का ध्यान रखना पड़ता है।
1 सूर्य आकाशगंगा (Milky way) के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ घूम रहा है
2 पृथ्वी अपने अक्ष (Axis) पर घूमती है
3 पृथ्वी (Earth) सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है
4 पृथ्वी अपने अक्ष पर झुकाव के कारण ध्रुव की कीली पर एक चक्कर बनाती है
5 पृथ्वी सूर्य (Sun) के साथ आकाशगंगा का चक्कर लगाते हुए सर्पिल गति करती है
इन चारों प्रकार की गतियों से बने सामंजस्य से ही हम सटीक गणना कर पाते हैं कि वर्तमान में कौनसा आकाशीय पिण्ड हमें कहां दिखाई देगा। अगर गणनाएं सटीक हैं तो हमें आकाशीय पिण्ड वहीं दिखाई देना चाहिए जहां गणना के अनुसार आ रहा है।
मसलन अगर हम कहें कि वर्तमान में सूर्य मकर संक्रांति के दौरान सुदूर दक्षिण में जा चुका है। ऐसे में उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी पड़नी चाहिए और दक्षिणी गोलार्द्ध में गर्मी। अगर वास्तव में ऐसा होता है तभी गणना को सही माना जाएगा।
भारतीय ज्योतिष गणित में यही खूबी है कि यह लगातार खुद को दुरुस्त करता हुआ चलता है। ऐसे में खगोलीय पिण्डों की सही समय पर सही स्थिति का आकलन कर पाता है। इसका सबसे सटीक उदाहरण हमें ग्रहण की गणनाओं में मिलता है।
जहां सूर्य और चंद्रमा अपनी सभी प्रकार की गतियों के बावजूद एक दूसरे को काटते हुए गुजरते हैं, वह क्षण बहुत छोटा होता है, इसके बावजूद भारतीय ज्योतिष गणना पद्धति से कई सौ साल आगे और पीछे की गणना से इस घटना का सटीक समय और ग्रहण की मात्रा तक बताई जाती है।
भारतीय ज्योतिष गणित को चुनौती
भारतीय ज्योतिष की गणित को नए शफूगे के साथ चुनौती देने का प्रयास किया जा रहा है कि गणना में जिस प्रकार हर नक्षत्र को 13 डिग्री 20 मिनट का आकाशीय क्षेत्र दिया जा रहा है, वह मूल रूप से गलत है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि नक्षत्र का आधार जिस नक्षत्र के तारे को लिया जा रहा है, वह तारा कहीं महज 7 डिग्री की दूरी पर है तो कहीं 20 डिग्री से अधिक दूरी पर है।
दरअसल यह ज्योतिषीय गणित और दूरबीन से दिखाई दे रहे आकाशीय पिण्ड के बीच जो सामंजस्य बैठाया गया है, उसमें भ्रम पैदा करने वाली स्थिति है। नक्षत्र की इकाई भले ही तारे हों, यानी कई तारों को मिलाकर एक नक्षत्र बनता है।
अब नक्षत्र का नाम तय करने के लिए उस नक्षत्र यानी तारों के समूह के सबसे चमकीले तारे को चुना गया और उसके आधार पर नक्षत्र का नामकरण कर दिया गया। अब आक्षेप लगाने वाले यह बता रहे हैं कि जिस तारे का नाम दिया गया है, उन तारों की आपस में दूरी कम या अधिक हो रही है। ऐसे में नक्षत्रों का विस्तार एकरूप नहीं होने से गणनाएं भी गलत हैं।
यहां समझने की बात यह है कि आकाश का विभाजन नक्षत्रों के प्रमुख तारों के आधार पर नहीं, बल्कि पूरे नक्षत्र के विस्तार को लेकर किया गया है। यह विभाजन कोई आकाशीय विभाजन नहीं बल्कि एक प्रकार का वर्चुअल विभाजन है, जो यह तय करता है कि आकाश के किस हिस्से की कितनी दूरी को वास्तव में नक्षत्र माना जाएगा।
उसमें केवल वह चमकीला तारा ही नहीं होता है, जिसके आधार पर नक्षत्र को नाम दिया गया है, बल्कि उस नक्षत्र में लाखों या करोड़ो ऐसे तारे भी शामिल हैं जो उस 13 डिग्री 20 मिनट के क्षेत्र में फैले हुए हैं जिन्हें हम नग्न आंखों से देख भी नहीं पा रहे हैं। ऐसे में चमकीले तारे के आधार पर उठाया जा रहा यह आक्षेप भी निर्मूल साबित होता है।