पैसे वाला और अमीर बनने के ज्योतिषीय योग Astrology of Money
आमतौर पर हम समझते हैं कि जिस व्यक्ति के पास अधिक पैसा होता है, वह अमीर होता है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। जिस व्यक्ति के पास आज पैसा है कल नहीं भी हो सकता है, लेकिन अमीर आदमी के पास अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए हमेशा पर्याप्त पैसा होता है। यह मूलभत अंतर हमें ज्योतिषीय योगों (Astrology of Money) में भी दिखाई देता है।
कोई जातक किसी समय विशेष पर पैसे वाला हो सकता है, लेकिन उस दौरान भी ऐसा हो सकता है कि वह अपनी सभी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम न बन पाए। आइए देखते हैं कि ज्योतिष में ऐसे कौनसे योग हैं जो हमें पैसे वाला या अमीर बनाते हैं।
कुण्डली में दूसरे भाव को ही धन भाव कहा गया है। दूसरे भाव और इसके अधिपति की स्थिति हमारे संग्रह किए जाने वाले धन के बारे में संकेत देती है। कुण्डली का चौथा भाव हमारे सुखमय जीवन जीने के बारे में संकेत देता है।
पांचवा भाव हमारी उत्पादकता के बारे में बताता है, छठे भाव से ऋणों और उत्तरदायित्वों को देखा जाएगा। सातवां भाव व्यापार में साझेदारों को देखने के लिए बताया गया है।
इसके अलावा ग्यारहवां भाव आय और बारहवां भाव व्यय से संबंधित है। प्राचीन काल से ही जीवन में अर्थ के महत्व को प्रमुखता से स्वीकार किया गया। इसका असर फलित ज्योतिष में भी दिखाई देता है। दूसरा, चौथा, पांचवां, छठा, सातवां, ग्यारहवां और बारहवां भाव कमोबेश हमारे धन के बारे में ही जानकारी देते हैं।
केवल दूसरा भाव सक्रिय होने पर जातक के पास पैसा होता है, लेकिन आय का निश्चित स्रोत नहीं होता, लेकिन दूसरे और ग्यारहवें दोनों भावों में मजबूत और सक्रिय होने पर जातक के पास धन भी होता है और उस धन से अधिक धन पैदा करने की ताकत भी। ऐसे जातक को ही सही मायने में अमीर कहेंगे।
दूसरा भाव प्रबल होने पर जातक के पास पैतृक धन बहुतायत से होता है। उसे अच्छी मात्रा में पैतृक धन प्राप्त होता है। इस भाव की स्थिति और इसके अधिपति की स्थिति अच्छी होने पर जातक अपनी पारिवारिक संपत्ति का भरपूर उपभोग कर पाता है।
इस भाव में सौम्य ग्रह होने पर अच्छे परिणाम हासिल होते हैं और क्रूर या पाप ग्रह होने पर खराब परिणाम हासिल होते हैं। दूसरी ओर ग्यारहवां भाव मजबूत होने पर जातक अपनी संपत्ति अर्जित करता है। उसे व्यवसाय अथवा नौकरी में अच्छा धन हासिल होता है।
ग्यारहवें और बारहवें भाव का अच्छा संबंध होने पर जातक लगातार निवेश के जरिए चल-अचल संपत्तियां खड़ी कर लेता है। पांचवां भाव मजबूत होने पर जातक सट्टा या लॉटरी के जरिए विपुल धन प्राप्त करता है।
किसी भी जातक के पास किसी समय विशेष में कितना धन हो सकता है, इसके लिए हमें उसका दूसरा भाव, पांचवां भाव, ग्यारहवां और बारहवें भाव के साथ इनके अधिपतियों का अध्ययन करना होगा।
इससे जातक की वित्तीय स्थिति का काफी हद तक सही आकलन हो सकता है। इन सभी भावों और भावों के अधिपतियों की स्थिति सुदृढ़ होने पर जातक कई तरीकों से धन कमाता हुआ अमीर बन जाता है।
दशाओं का प्रभाव
धन कमाने या संग्रह करने में जातक की कुण्डली में दशा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। द्वितीय भाव के अधिपति यानी द्वितीयेश की दशा आने पर जातक को अपने परिवार से संपत्ति प्राप्त होती है, पांचवे भाव के अधिपति यानी पंचमेश की दशा में सट्टे या लॉटरी से धन आने के योग बनते हैं।
आमतौर पर देखा गया है कि यह दशा बीतने के साथ ही जातक का धन भी समाप्त हो जाता है। ग्यारहवें भाव के अधिपति यानी एकादशेश की दशा शुरू होने के साथ ही जातक का अटका हुआ पैसा आने लगता है, कमाई के कई जरिए खुलते हैं और लाभ की मात्रा बढ़ जाती है। ग्रह और भाव की स्थिति के अनुरूप फलों में कमी या बढ़ोतरी होती है।
इसी तरह छठे भाव की दशा में लोन मिलना और बारहवें भाव की दशा में खर्चों में बढ़ोतरी के संकेत मिलते हैं।शुक्र की महिमा वर्तमान दौर में जहां भोग और विलासिता चरम पर है, किसी व्यक्ति के धनी होने का आकलन उसकी सुख सुविधाओं से किया जा रहा है। ऐसे में शुक्र की भूमिका उत्तरोतर महत्वपूर्ण होती जा रही है।
किसी जातक की कुण्डली में शुक्र बेहतर स्थिति में होने पर जातक सुविधा संपन्न जीवन जीता है। शुक्र ग्रह का अधिष्ठाता वैसे शुक्राचार्य को माना गया है, जो राक्षसों से गुरु थे, लेकिन उपायों पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि शुक्र का संबंध लक्ष्मी से अधिक है।
शुक्र के आधिपत्य में वृषभ और तुला राशियां हैं। इसी के साथ शुक्र मीन राशि में उच्च का होता है। इन तीनों राशियों में शुक्र को बेहतर माना गया है। कन्या राशि में शुक्र नीच हो जाता है, अत: कन्या का शुक्र अच्छे परिणाम देने वाला नहीं माना जाता।
लग्न अनुसार पैसे वाले
मेष लग्न के जातकों का शुक्र, वृष लग्न के जातकों का बुध, मिथुन लग्न के जातकों का चंद्रमा, कर्क लग्न वाले जातकों का सूर्य, सिंह लग्न वाले जातकों का बुध, कन्या लग्न वाले जातकों का शुक्र, तुला लग्न वाले जातकों का मंगल, वृश्चिक लग्न वाले जातकों का गुरु, धनु लग्न वाले जातकों का शनि, मकर लग्न वाले जातकों का शनि, कुंभ लग्न वाले जातकों का गुरु और मीन लग्न वाले जातकों का मंगल अच्छी स्थिति में होने पर अथवा इनकी दशा एवं अंतरदशा आने पर जातक के पास धन का अच्छा संग्रह होता है अथवा पैतृक संपत्ति की प्राप्ति होती है। अगर लग्न से संबंधित ग्रह की स्थिति सुदृढ़ नहीं है तो संबंधित ग्रहों का उपचार कर वित्तीय स्थिति में सुधार किया जा सकता है।
लग्न अनुसार कमाने वाले
कमाई के लिए हमें ग्यारहवां भाव देखना होगा। ऐसे में मेष लग्न वाले जातकों का शनि, वृष लग्न का गुरु, मिथुन लग्न का मंगल, कर्क लग्न का शुक्र, सिंह लग्न का बुध, कन्या लग्न का चंद्रमा, तुला लग्न का सूर्य, वृश्चिक लग्न का बुध, धनु लग्न का शुक्र, मकर लग्न का मंगल, कुंभ लग्न का गुरु और मीन लग्न का शनि अच्छी स्थिति में होने पर जातक अच्छा धन कमाता है। इन ग्रहों की दशा में भी संबंधित लग्न के जातक अच्छी कमाई अथवा लाभ अर्जित करते हैं।
कुछ विशिष्ट ज्योतिषीय योग (Astrology of Money)
- किसी भी लग्न में पांचवें भाव में चंद्रमा होने पर जातक सट्टा, लॉटरी अथवा अचानक पैसा कमाने वाले साधनों से कमाई का प्रयास करता है। चंद्रमा फलदायी हो तो ऐसे जातक अच्छी कमाई कर भी लेते हैं।
- कारक ग्रह की दशा में जातक सभी सुख भोगता है। ऐसे में इस दशा के दौरान जातक को धन संबंधी परेशानियां भी कम आती हैं।
- सातवें भाव में चंद्रमा होने पर जातक साझेदार के साथ व्यवसाय करने का प्रयास करता है, लेकिन धोखा खाता है।
- लाल किताब के अनुसार किसी भी लग्न में बारहवें भाव में शुक्र हो तो, जातक जिंदगी में कम से कम एक बार करोड़पतियों जैसे सुख प्राप्त करता है, चाहे अपना घर बेचकर ही वह उस सुख को क्यों न भोगे।
- लेखक का अनुभव है कि छठे भाव का ग्यारहवें भाव से संबंध हो तो, जातक पहले ऋण लेता है और उसी से कमाई करता है।
- प्रसिद्ध ज्योतिष हेमवंता नेमासा काटवे कहते हैं कि नौकरीपेशा, कर्महीन और आलसी लोगों की जिंदगी में अधिक उतार चढ़ाव नहीं आते, ऐसे में इनका फर्श से अर्श पर पहुंचने के योग बनने पर भी उसके लाभ नहीं मिलते हैं।
- कई बार चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और आईएएस की कुण्डली में एक समान राजयोग होता है, अंतर केवल उसे भोगने का होता है।