हिन्दू कैलेंडर की गणनाएं और उपयोगिता
हिन्दू कैलेंडर की गणनाएं और उपयोगिता

हिन्दू कैलेंडर की गणनाएं और उपयोगिता
Calculations and Utilities of Hindu Calendar


हर ईस्‍वी वर्ष के आखिरी दिनों में यानी दिसम्‍बर और साल बदलने के बाद जनवरी में यह सवाल उठता है कि कौनसा कलेण्‍डर फॉलो करना चाहिए। एक ज्‍योतिषी होने के नाते मैं खुद इस सवाल के समक्ष बार बार आया हूं। सनातनी भी प्रमुख रूप से दो प्रकार के कलेण्‍डर को फॉलो करते हैं, पहला है विक्रम संवत् और दूसरा है शक संवत्। आम जनमानस में जहां विक्रम संवत् की पैठ बनी हुई है, वहीं आजादी के बाद सरकार ने सरकारी कलेण्‍डर के रूप में शक संवत् को मान्‍यता दे रखी है। सरकारी कार्यों में व्‍यवहार में ईस्‍वी कलेण्‍डर का ही उपयोग किया जाता है, जिसमें जनवरी, फरवरी से दिसम्‍बर तक के महीने होते हैं।

मूल प्रश्‍न यह है कि कलेण्‍डर (Hindu Calendar) की जरूरत ही क्‍यों पड़ती है। छह ऋतुओं और मानसून पर आधारित कृषि वाले और नदियों द्वारा पोषित भारतीय भूभाग में यह जानना बहुत जरूरी था कि धान उगाने के लिए वर्षा कब होगी, ताकि वर्षा से पूर्व खेत को जोतकर तैयार किया जा सके। ऐसे में तारों की सहायता ली गई। सूर्य और चंद्रमा साक्षी। पंचांग के पांच अंगों को जमाया गया। तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण के जरिए खगोलीय पिंडों पर नजर रखी जाने लगी। यहीं से भारतीय कलेण्‍डर का विकास हुआ। आज खगोलीय घटना को देखने के लिए आकाश की ओर नजर उठाकर देखने की जरूरत भी नहीं रही, पंचांग की गणनाओं को देखकर बताया जा सकता है कि अभी आसमान में खगोलीय पिंड कहां पर हैं।

ज्‍योतिषी ऋषियों ने बताया कि खगोलीय पिंडों की क्‍या स्थिति होने पर सुभिक्ष या दुर्भिक्ष पड़ेगा। कौनसा समय देह के अनुकूल होगा और कौनसा मौसम प्रतिकूल, कब उपवास करना है और कब उत्‍सव। कुल मिलाकर देखा जाए तो हमारा कलेण्‍डर केवल दिनों को गिनने भर का सबब नहीं है, बल्कि ट्रॉपिकल कनेक्‍शन को साथ लिए है, मौसम और मानसून की तरंगों के साथ बहता है।

काल सतत है, कभी खंडित नहीं होता, दिनों की गणना केवल सुविधा के लिए है, इससे काल खण्‍ड खण्‍ड नहीं होता, ब‍स गिनने की सुविधा भर रहती है। इसकी एक सबसे भोथरी और सादी विधि है एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक  के समय को एक दिन गिनना और इस तरह गिनते चले जाना। इसे कुछ अधिक विशिष्‍ट बनाया जाए तो साल के 365 दिनों को 12 महीने और हर महीने को लगभग 30 दिन में बांट देना। पश्चिम अपनी गणनाओं में केवल यहीं तक पहुंच गया। इससे आगे दो प्रकार की ठोस गणनाएं हैं। चंद्रमा की गति से दिन और मास का निर्धारण और सूर्य की गति से वर्ष का निर्धारण। यानी सूर्य और चंद्रमा की स्‍थाई गतियों से काल की लय को पकड़ने का प्रयास करना। चंद्र मास और सौर वर्ष मिलकर एक विक्रम संवत् बनाते हैं। यह विधि अब तक की सर्वश्रेष्‍ठ विधि है। यह न केवल तिथि की जानकारी देती है, बल्कि यह भी तय करती है कि जैसा मौसम इस वर्ष था, ठीक एक वर्ष बाद किस दिन ठीक ऐसा ही मौसम होगा।

हमारे त्‍योंहार, उत्‍सव और उपवास तक कलेण्‍डर के अनुरूप चलते हैं और हमें प्रकृति के साथ लय में बनाकर रखते हैं। इस बारे में बनारस के सोमदत्‍त द्विवेदीजी ने कुछ दिन पहले एक पोस्‍ट लिखी है, जिसे मैं ज्‍यों का त्‍यों यहां शामिल कर रहा हूं।  पञ्चाङ्ग के महीनों के आगे कोष्ठ में गैगेरियन कैलेंडर के महीने अंकित हैं – जिससे समझने में आसानी हो…

  • प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष बोल कर 15-15 दिन होते हैं
  • जब रात अंधेरी तो कृष्ण पक्ष, और जब उजली तो शुक्ल पक्ष
  • पहले दिन को एकम या प्रतिपदा बोला जाता है
  • फिर द्वितीया या दूज, तृतीया या तीज, चतुर्थी या चौथ,पंचमी, षष्ठी-छठ, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी -तेरस, चतुर्दशी – चौदस,
  • कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस-अमावस्या और शुक्ल पक्ष के अंत को पूनम-पूर्णिमा बोला जाता है.
  • छह ऋतुओं के दो-दो माह होते – बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त और शिशिर
  • वर्ष में दो अयन होते दक्षिणायन और उत्तरायण और महीने होते बारह (अधिक मास भी आता है)

१. चैत्र (मार्च-अप्रैल)

चैत, चइत, चैत्र कृष्ण प्रतिपदा यानी एकम से आरम्भ होता है, परन्तु शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गणेश-पूजन, कलश स्थापन, देवी पूजन से श्री रामजन्मोत्सव, नवमी तक मनाते हुये – सोल्लास वर्षारम्भ होता है,

  • चैती एक गायन विधा भी है,
  • चैतन्यता का प्रतीक है चैत्र !
  • चैत्र नामक स्वारोचिष मन्वंतर के मनु-पुत्र का भी नाम था.
  • चित्रा नक्षत्र से सम्बद्ध होने के कारण पहले महीने का नाम चैत्र पड़ा,
  • इस महीने के पहले दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का चित्र खींचा.

२. वैशाख (अप्रैल-मई)

बैसाख, बइसाख में बसन्त से ग्रीष्म ऋतु में प्रवेश कराता है, रवि गेहूँ आदि की फसल पक कर तैयार होती है, शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाते हैं वैशाखी.

  • इसी माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय-तृतीया बोलते हैं,
  • शुक्ल पक्ष चौदस को नृसिंह प्राकट्य भी मनाते हैं.

३. ज्येष्ठ (मई-जून)

जेठ शब्द से परिचित ही होंगे,

यह ‘बड़े’ के रूप में प्रयुक्त होता है, वट सावित्री व्रत इसी माह की कृष्ण अमावस्या को मनाते हैं, शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा-दशहरा, फिर निर्जला-एकादशी और द्वादशी को नारद-जयन्ती.

४. आषाढ़ (जून-जुलाई)

असाढ़ बोलते पूरब के भइया लोग मिल जायेंगे,

शुक्ल पक्ष की द्वितीया रथयात्रा और पूर्णिमा को व्यास या गुरु-पूर्णिमा.

५. श्रावण (जुलाई-अगस्त)

सावन बोलते ही हृदय झूला झूलने लगता है, हरियाली ही हरियाली, शुक्ल तृतीया ही हरियाली तीज है, और पंचमी नाग-पञ्चमी, शिव भक्तों की बम बम और कृष्ण भक्तों की राधे राधे श्रवण कराने के लिए ही श्रावण सावन आता है.

इसी मास की शुक्ल पूर्णिमा रक्षा बन्धन – राखी नाम से जानी जाती है.

६. भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर)

भादों यानी भाद्र पद में दुनिया के सबसे भद्र ने पृथ्वी पर अपना पद यानी पाँव रखा – भाद्र पद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी बोलते हैं. शुक्ल पक्ष की अष्टमी “राधाष्टमी”.

कृष्ण पक्ष की षष्ठी यानी छठ हल षष्ठी या ललही छठ भी बोली जाती है, कृष्ण अमावस्या को कुशोत्पाटनी अमावस्या बोलते हैं.

७. आश्विन (सितम्बर-अक्टूबर)

बोलचाल की भाषा में क्वार या कुआर भी बोला जाता है,

कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक की अवधि ही पितृ पक्ष बोली गयी – मानो अपने कुल के जनों का स्मरण कराता है – आश्विन का प्रथम पक्ष. इसी मास के द्वितीय यानी शुक्ल पक्ष से शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाता है, जो कि नवमी को पूरा हो दशमी को विजय दशमी – दशहरा बताता है, शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी शरद-पूर्णिमा के साथ यह माह पूरा होता है.

८. कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर)

कातिक बोलते हुए गंगा नहान का जो मजा है वह तो वही जाने जो कातिक नहाया हो. यह पूरी तरह से लोडेड माह है – “सात वार नौ त्योहार” वाली कहावत को पूरी करता है –

  • कृष्ण द्वादशी – गोवत्स द्वादशी
  • कृ. त्रयोदशी – धन-तेरस, धन्वन्तरि जयन्ती
  • कृ. चतुर्दशी – नरक चतुर्दशी, हनुमान जयन्ती
  • अमावस्या – दीपावली
  • शुक्ल द्वितीया – भाई दूज
  • शुक्ल षष्ठी – सूर्य षष्ठी डाला छठ
  • शुक्ल अष्टमी – गोपाष्टमी
  • शुक्ल एकादशी – तुलसी विवाह
  • शुक्ल चतुर्दशी – वैकुण्ठ-चौदस
  • शुक्ल पूर्णिमा – कार्तिक पूर्णिमा

९. मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसम्बर)

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने आपको महीने में मार्गशीर्ष कहा –

मासानां मार्गशीर्षोSहम् 10.35,

मृगशिरा नक्षत्र पर इस माह की पूर्णिमा पड़ती है, अतः इस माह का नाम मार्गशीर्ष पड़ा. अग्रहायण को बोलचाल में इसे अगहन या अघहन भी बोलते हैं, अघ यानी पाप को हन मारनेवाला, या अ गहन – जिसमें सरलता हो .

इसी माह की शुक्ल पञ्चमी को सीता-राम विवाह हुआ.

१०. पौष (दिसम्बर-जनवरी)

पूस की रात पढ़ते ही रोआ सिहर गया था, इसके शुक्ल पक्ष में सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। उस दिन मकर संक्रांति , खिचड़ी पोंगल मनाते हैं.

११. माघ (जनवरी-फरवरी)

माघ शुक्ल पञ्चमी यानी सरस्वती पूजा, बसन्त ऋतु का पदार्पण.

१२. फाल्गुन (फरवरी-मार्च)

फागुन में फगुनहट चढ़ते ही होली और फाग की आग धधक उठती है, कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को शिव-विवाह हुआ, जिसे शिव-रात्रि बोलते हैं – उससे पहले वाली एकादशी – रंगभरी एकदशी बोली जाती है, और होली खेल पूर्णिमा बोल – फाल्गुन वर्ष पूरा कर जाता है।