गजकेसरी योग बनाता है प्रतिष्ठित और धनवान
Gajkesari Yog brings Fame and Wealth
किसी जातक की जन्मपत्रिका में गजकेसरी योग होना अपने आप में राजयोग का सूचक होता है। भले ही भाव के आधार पर बने राजयोग जातक की कुण्डली में न भी हो तो भी जिस जातक की कुण्डली में गजकेसरी योग होता है, वह जातक श्रेष्ठ जीवन जीता है। गज का अर्थ होता है हाथी और केसरी का अर्थ होता है शेर। दक्षिण भारत के बहुत से मंदिरों के प्रवेश द्वार पर शक्ति के प्रदर्शन के तौर पर गज पर सवार केसरी की प्रतिमाएं मिलती हैं। इस योग का फल भी कमोबेश ऐसा ही होता है, संभवत: इसी कारण ज्योतिष के विद्वानों ने इस योग का नाम गजकेसरी योग रखा होगा।
कैसे बनता है गजकेसरी योग?
इसकी सबसे सरल व्याख्या मिलती है कि चंद्रमा से वृहस्पति अगर केन्द्र में हो तो गजकेसरी योग होता है। यह चंद्रमा और वृहस्पति की युति हो सकती है अथवा चंद्रमा से चतुर्थ, सप्तम और दशम स्थान में गुरु की स्थिति हो सकती है। इन चारों अवस्थाओं को गजकेसरी योग ही कहा जाएगा।
गजकेसरी योग का क्या फलादेश है?
इस योग वाला जातक नैसर्गिक रूप से बुद्धिमान, धनवान और श्रेष्ठ होता है। समाज का भला करने वाला तथा राजा का हित चाहने वाला होता है। ऐसे जातक के पास सुख सुविधाएं और संसाधन सदैव रहते हैं।
उपरोक्त सभी कथन और फलादेश ज्योतिष की कमोबेश हर प्रमुख ज्योतिषी ने कहे हैं। लेकिन वास्तविकता में गजकेसरी योग किसी थंबरूल जैसा नहीं है, इस योग के कई अन्य पक्ष भी व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखने को मिलते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिस जातक की कुण्डली में गजकेसरी योग होता है, अन्य जातकों की तुलना में उसका जीवन कुछ श्रेष्ठ ही होता है। ऐसे जातक की चेष्टाएं भी श्रेष्ठ होती हैं और जीवन का स्तर भी उच्च होता है। इसके बावजूद सभी जातकों को एक जैसे परिणाम हासिल नहीं होते।
गजकेसरी की श्रेष्ठ स्थिति…
अगर कोई कर्क लग्न का जातक हो और उसकी कुण्डली में लग्न में गुरु और चंद्रमा की युति बनी रही हो तो ऐसे जातक को मैं श्रेष्ठ गजकेसरी योग वाला जातक कहूंगा। यहां चंद्रमा स्वराशि का होकर बैठा है और गुरु उच्च राशि का है। बशर्ते इस योग को कोई क्रूर अथवा पाप ग्रह दृष्टि से मलिन न कर रहा हो। दूसरी ओर मीन लग्न में गुरु बैठा हो और चतुर्थ भाव में मिथुन का चंद्रमा हो तो इसे भी श्रेष्ठ कहा जा सकता है, इसमें भी शर्त यही रहेगी कि चंद्रमा अकेला न हो, पीडि़त न हो और किसी विपरीत ग्रह की चंद्रमा पर दृष्टि न पड़ रही हो।
दूसरी ओर अगर कर्क लग्न में लग्न में चंद्रमा और सप्तम में गुरु हो जो कि नैसर्गिक रूप से मकर राशि का होगा, तो यह योग गजकेसरी तो बनेगा, लेकिन वैसा फलदायी नहीं होगा जैसा कि लग्न में दोनों ग्रहों की युति में होना चाहिए।
इसी प्रकार मेष लग्न में दूसरे भाव में उच्च का चंद्रमा हो यानी वृषभ राशि का चंद्रमा हो और उससे दसवें यानी एकादश भाव में कुंभ राशि का गुरु हो तो यहां गुरु कालपुरुष की कुण्डली के अनुसार है तो कठिन स्थान पर, लेकिन नीच का नहीं है। यहां चंद्रमा भी उच्च का है और गुरु भी किसी कुदृष्टि का शिकार नहीं है तो इसे श्रेष्ठ गजकेसरी योग कहा जा सकता है।
इस योग का अनुकूल प्रभाव अधिकांशत: जातक के मानसिक और सामाजिक जीवन पर ही पड़ता है। ऐसा जातक अधिकांशत: सहज बना रहता है। समाज के भले के लिए काम करता है। सामाजिक रूप से स्वीकार्यता अधिक मिलती है।
उपरोक्त योग किसी कोण से राजयोग से भी जुड़ जाए तो सोने में सुहागा हो जाता है, तब जातक अपने जीवन में अधिक तेजी से प्रगति करता है। अगर ऐसा योग किसी दु:योग से जुड़ जाए तो बेहतरीन युति होने के बावजूद गुरु और चंद्रमा के वैसे अनुकूल परिणाम प्राप्त नहीं होते जो गजकेसरी योग में मिलने चाहिए।
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ज्योतिषी सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी