पिप्पलाद ऋषिकृत शनि स्तोत्रं Shani Stotram
पिप्पलाद ऋषिकृत इस शनि स्तोत्र (Shani Stotram) का पाठ करते समय बार-बार शनिदेव को प्रणाम करते रहना चाहिए. इस स्तोत्र का पाठ शनि यंत्र के सामने नीले अथवा बैंगनी रंग के फूलों के साथ करना चाहिए. यदि यंत्र नहीं है तब इस पाठ को पीपल के पेड़ के सामने बैठकर भी किया जा सकता है और मन में शनिदेव का ध्यान भी करते रहना है. पिप्पलाद ऋषि ने शनि के कष्टों से मुक्ति के लिए इस स्तोत्र की रचना की. राजा नल ने भी इसी स्तोत्र के पाठ द्वारा अपना खोया राज्य पुन: पा लिया था और उनकी राजलक्ष्मी भी लौट आई थी
य: पुरा नष्टराज्याय, नलाय प्रददौ किल ।
स्वप्ने तस्मै निजं राज्यं, स मे सौरि: प्रसीद तु ।।1।।
केशनीलांजन प्रख्यं, मनश्चेष्टा प्रसारिणम् ।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, नमस्यामि शनैश्चरम् ।।2।।
नमोsर्कपुत्राय शनैश्चराय, नीहार वर्णांजनमेचकाय ।
श्रुत्वा रहस्यं भव कामदश्च, फलप्रदो मे भवे सूर्य पुत्रं ।।3।।
नमोsस्तु प्रेतराजाय, कृष्णदेहाय वै नम: ।
शनैश्चराय ते तद्व शुद्धबुद्धि प्रदायिने ।।4।।
य एभिर्नामाभि: स्तौति, तस्य तुष्टो ददात्य सौ ।
तदीयं तु भयं तस्यस्वप्नेपि न भविष्यति ।।5।।
कोणस्थ: पिंगलो बभ्रू:, कृष्णो रोद्रोsन्तको यम: ।
सौरि: शनैश्चरो मन्द:, प्रीयतां मे ग्रहोत्तम: ।।6।।
नमस्तु कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोsस्तुते ।
नमस्ते बभ्रूरूपाय कृष्णाय च नमोsस्तुते ।।7।।
नमस्ते रौद्र देहाय, नमस्ते बालकाय च ।
नमस्ते यज्ञ संज्ञाय, नमस्ते सौरये विभो ।।8।।
नमस्ते मन्दसंज्ञाय, शनैश्चर नमोsस्तुते ।
प्रसादं कुरु देवेश, दीनस्य प्रणतस्य च ।।9।।