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Vastu : energy flow वास्तु में ऊर्जा प्रवाह

Vastu : energy flow वास्तु में ऊर्जा प्रवाह

Vastu : energy flow वास्तु में ऊर्जा प्रवाह

किसी भी स्‍थान विशेष के वास्‍तु (Vastu) विश्‍लेषण का अर्थ यह है कि वह स्‍थान किसी व्‍यक्ति अथवा संस्‍था के लिए कितना उपयुक्‍त अथवा अनुपयुक्‍त है। वास्‍तु के नियम भी कमोबेश इसी आधार पर बताए गए हैं। इस लेख में हम वास्‍तु को ऊर्जा के प्रवाह (Energy Flow) के आधार पर विश्‍लेषण करेंगे।

किसी घर में वास्‍तु के अनुरूप निर्माण या वस्‍तुओं को किसी स्‍थान विशेष पर रखना अथवा किसी दफ्तर निर्माण में मूल रूप से अंतर होता है। अगर वास्‍तु पुरुष पर आरोपित देवताओं के आधार पर विश्‍लेषण करेंगे तो यह कुछ कठिन प्रतीत होगा, लेकिन अगर इसी वास्‍तु निर्माण को हम ऊर्जा के प्रवाह के आधार पर देखेंगे तो अधिक सहजता से किसी व्‍यक्ति अथवा संस्‍था के अनुकूल अथवा प्रतिकूल वास्‍तु का निर्धारण कर सकेंगे। वास्‍तु में मूल रूप से तीन बातों का ध्‍यान रखा जाता है।

हवा, पानी और रोशनी Air water and Light

इन तीनों का बहाव अगर सही हो तो उस घर को वास्‍तु के दृष्टिकोण से उपयुक्‍त कहा जा सकता है। अन्‍य देशों की तुलना में भारत की भौगोलिक स्थिति और मौसम चक्र विशिष्‍ट है।उत्तर की ओर हिमालय, उत्‍तर पश्चिम में रेगिस्‍तान, दक्षिण में समुद्र और पूर्व में पहाडि़यों और समुद्र का मिश्रण। एक ओर हिमालय ठण्‍डे प्रदेशों से आ रही सर्द हवाओं को रोकता है तो अरब की खाड़ी से उठने वाली मानसूनी हवाएं प्रकृति ने केवल भारतीय उपमहाद्वीप के लिए ही बनाई हैं। आप भारत के किसी भी कोने में जाएं इन विशेषताओं का लाभ आपको जरूर मिलेगा।

आपके घर का वास्‍तु

घर के वास्‍तु के निर्धारण के समय हमें दिशाओं के ऊर्जा स्‍तर को समझना होगा। उत्‍तर और पूर्व दिशा को अधिक ऊर्जा वाली दिशाएं माना गया है। पूर्व में जहां तेज अधिक है वहीं उत्‍तर में गति अधिक है। उत्‍तर-पूर्व कोण में दोनों का लाभ मिलता है। दक्षिण दिशा में तेजी कम लेकिन दाह यानि ताप अधिक है। दक्षिण पूर्व कोण में तेज और दाह दोनों होने से यह शुद्ध स्‍थान बनता है। पश्चिम में रोशनी कम है और गति भी। उत्‍तरी पश्चिमी कोना दक्षिणी पश्चिमी कोने की तुलना में अधिक ऊर्जा रखता है। इसे आप हवा के बहाव, रोशनी के आगमन और जल के प्रवाह के रूप में भी देख सकते हैं।

उत्‍तर पूर्व बच्‍चों का कोना

ऊर्जा के इस प्रवाह को समझने के बाद हमें घर में ऊर्जा के प्रवाह के अनुसार ही सदस्‍यों रहने और क्रिया-कलापों के स्‍थान तय करने होंगे। घर का उत्‍तरी पूर्वी कोना अधिकतम ऊर्जा वाला स्‍थान है। यहां उन्‍हीं लोगों को रखा जा सकता है जो इस ऊर्जा के प्रवाह में सहज रह सकें। घर के बच्‍चे इस स्‍थान के लिए सर्वाधिक उपयुक्‍त हैं। पूर्व और उत्‍तर से मिल रही सकारात्‍मक ऊर्जा उन्‍हें तेजी से विकसित करेगी। दक्षिण पूर्व में रसोई बनाने से हमें दक्षिण से मिल रहे दाह और पूर्व से मिल रहे तेज का लाभ होगा। इस स्‍थान पर चूल्‍हा हमेशा जलता रहेगा और स्‍वादिष्‍ट भोजन मिलेगा। दक्षिण पश्चिम में घर के बड़े बुजुर्ग रह सकते हैं। उनकी गति कम होती है और ऊर्जा का स्‍तर भी। वहां वे सहज रहेंगे। घर के उत्‍तरी पश्चिमी कोने में गृह मालिक को रखा जा सकता है, वे ऊर्जा और न्‍यायप्रियता के साथ काम कर सकेंगे। इसी तरह बिजली के उपकरणों को दक्षिण की दीवार पर और जल से संबंधित वस्‍तुओं को उत्‍तरी क्षेत्र में रखा जाना चाहिए। यह ऊर्जा की प्रकृति के अनुकूल भी होगा।

ग्रह और उनकी ऊर्जा

वास्‍तु की संरचना में ग्रहों को वही स्‍थान दिए गए हैं जैसी उनकी ऊर्जा है। यह सकारात्‍मक या नकारात्‍मक हो सकती है। वास्‍तु का पूर्व सूर्य के पास है। यह तेजोमय है। उत्‍तर पूर्व पर गुरु का अधिकार है। यह सकारात्‍मक और तेज है। उत्‍तर पर बुध का अधिकार है। यह रचनात्‍मक और सक्रिय है। उत्‍तर पश्चिम पर चंद्रमा का अधिकार है। यह रचनात्‍मक लेकिन अधिक विचार करने वाला है। पश्चिम पर शनि का अधिकार है। यह नकारात्‍मक और धीमा है। दक्षिण पश्चिम पर राहू का अधिकार है। यह नकारात्‍मक और रहस्‍य समेटे हुए है। दक्षिण पर मंगल का राज है। यह उग्र और दाह देने वाला है। दक्षिण पश्चिम पर शुक्र का राज है। यह उष्‍ण और तेजयुक्‍त है। यह क्षेत्र की ऊर्जा के हिसाब से ही हम उसे काम में लें तो अधिकतम परिणाम हासिल होंगे।

सामान्‍य उपचार

कुछ सामान्‍य उपचार कर ऊर्जा के स्‍तर को संतुलित रखा जा सकता है। सिंह द्वार (घर का मुख्‍य दरवाजे) के आगे किसी प्रकार का अवरोध हो तो उसे हटा देना चाहिए, अथवा सिंह द्वार को वहां से हटा देना चाहिए। दक्षिणी कोने में पानी का कम से कम उपयोग करें। वहां छोटा मंदिर बनाकर दीपक जलाकर रखें। उत्‍तरी पश्चिमी कोने में पानी के बहने का साधन बनाए। बर्तन धोने का स्‍थान, वाशिंग मशीन या पेड़ पौधे लगाकर वहां निरंतर पानी गिराया जा सकता है। इससे परिवार में तनाव कम होगा। उत्‍तरी और पूर्वी कोनों में दक्षिणी और पश्चिमी कोनों की अपेक्षा अधिक रोशनी का प्रबंध रखें। घर में हवा का बहाव सुनिश्चित करने के लिए एक्‍जास्‍ट फैन लगाएं। गंदा पानी शुक्र का परिचायक होता है। ऐसे में पूर्व मुखी घरों में घर के दाएं कोने से घर का गंदा पानी निकालने की सलाह दी गई है। बाहर से भीतर की ओर शुद्ध जल का प्रवाह उत्‍तरी क्षेत्रों में हो तो बेहतर है।

चेतना को प्रभावित करता है कचरा

हम घर में मौजूद कचरे के प्रति उपेक्षा का भाव रखते हैं। इसके चलते हम इसके निस्‍तारण के बारे में भी गंभीरता से नहीं सोचते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि कचरा धीरे-धीरे हमें मानसिक, आर्थिक और कई बार शारीरिक स्‍तर पर भी प्रभावित करने लगता है। वास्‍तु निमयों में कचरे का निस्‍तारण तेजी से करने के लिए कहा गया है। जिस मकान की छत पर कचरा जमा होता है, उस मकान के मालिक पर ऋण तेजी से चढ़ता है, इसी के साथ पैसा भी जगह जगह फंस जाता है। छत पर किसी भी सूरत में कचरे का जमाव नहीं होना चाहिए। यह आर्थिक भार से दबा देता है। कचरा जमा करने का दूसरा सबसे बड़ा स्‍थान है अंडरग्राउंड।

जिस मकान के तहखाने में भारी मात्रा में कचरा जमा होता है वहां पारिवारिक तनाव तेजी से बढ़ता है। एक स्थिति यह आती है कि छोटी मोटी बातों पर भी बड़े झगड़े होने लगते हैं। अंडरग्राउंड के कचरे का निस्‍तारण भी तुरत फुरत करना चाहिए। इन दो प्रमुख स्‍थानों के अलावा घर में कई ऐसे कोने होते हैं जहां हमारी इच्‍छा के बगैर कचरा एकत्रित होता रहता है। मसलन कागज के टुकड़े, पुराने बैग, पुराने जूते, पुरानी चिठ्ठियां, मैग्‍जीन, ऐश ट्रे, बच्‍चों के टूटे हुए खिलौने, पुरानी बॉल्‍पेन, धातुओं के टुकड़े, अवधिपार दवाएं, पुराने और टूटे बर्तन, सूखे हुए पौधों जैसी हजारों छोटी छोटी चीजें घर में पड़ी रहती हैं और हम इनकी तरफ ध्‍यान भी नहीं दे पाते हैं। इस कचरे के निस्‍तारण से आप बहुत अधिक राहत महसूस कर सकते हैं। आपको इसी रविवार यह काम निपटा देना चाहिए।


आवश्‍यक बिंदू…

– किसी घर के वास्‍तु में तीन चीजों का प्रमुखता से ध्‍यान रखा जाए : हवा, पानी और रोशनी

– ऊर्जा के प्रवाह को रोशनी, हवा और पानी के बहाव से देखेंगे।

– ऊर्जा का प्रवाह उत्‍तर और पूर्व से आता है और दक्षिण तथा पश्चिम की ओर जाता है।

– उत्‍तरी पूर्वी कोने में सर्वाधिक ऊर्जा होती है।

– दक्षिणी पश्चिमी कोने में सबसे कम ऊर्जा होती है।

– परिवार के जिस सदस्‍य की जितनी ऊर्जा है उसे उतनी ही ऊर्जा के स्‍थान पर बैठाया जाए।

– उत्‍तरी पूर्वी कोना न केवल साधना बल्कि बच्‍चों के लिए भी बेहतर होगा

– दक्षिणी पश्चिमी कोना भण्‍डार के अलावा धैर्य के लिए परिवार के मुखिया का होगा

– उत्‍तरी पश्चिमी कोना दादा-दादी अथवा जो भी ग्रांड पेरेंट्स हों उनके लिए होगा।

– दक्षिण पूर्व में रसोई होगी, जहां सात्विक दाह ऊर्जा है।

– आंगन खाली होगा, क्‍योंकि ब्रह्म स्‍थान पर बोझ नहीं रख सकते।

– भूमि भी अधिक ऊर्जा प्रवाह वाले स्‍थान पर नीची और कम ऊर्जा प्रवाह वाले स्‍थान पर ऊंची होगी।

– दुकान की वास्‍तु ऊर्जा का प्रवाह घर के ऊर्जा प्रवाह से ठीक उल्‍टा होगा।

– घर के अंदर दुकान होगी तो दोनों का ऊर्जा प्रवाह एक-दूसरे को प्रभावित करेगा।

– तीनों कारकों में से जो कारक प्रभावित हो रहा है उसी का ईलाज किया जाए।

– बाकी दोनों कारकों को छेड़ने की जरूरत ही नहीं है।