ज्योतिष की गीता KP Astrology Book Fundamental principle of astrology : K S Krishnamurthy
मैं बात कर रहा हूं कृष्णामूर्ति की छह किताबों (KP Astrology Books) में से सेकण्ड रीडर की। अधिकांश ज्योतिषी इसे इसी नाम से जानते हैं। यह छह किताबों की सीरीज की दूसरी पुस्तक है। वास्तव में इसका नाम फंडामेण्डल प्रिंसीपल ऑफ एस्ट्रोलॉजी है।
किताब की विषय सूची देखने पर लगता है कि इसमें ग्रहों, भावों और राशियों के बारे में विशद् जानकारी तो है लेकिन कृष्णामूर्ति के हस्ताक्षर यानि सब लार्ड या गणन पद्धतियों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती।
ज्योतिष की ऐसी (ठीक यह नहीं) जानकारी रेलवे स्टेशन या बस स्टेण्ड पर मिलने वाली चूरण छाप किताबों में भी मिल जाती फिर गुरूजी ने मुझे यह किताब देते हुए यह क्यों कहा कि यह ज्योतिष की गीता है। यह मुझे तब तक समझ में नहीं आया जब तक मैंने़ इस किताब को आठ बार नहीं पढ लिया।
हर बार किताब को सरसरी तौर पर पढ़ने के बाद मैं गुरूजी के पास पहुंचता और वे सभी बिन्दुओं को दरकिनार कर प्रस्तावना में दिए गए कई तथ्यों के बारे में पूछते और मैं फेल हो जाता। घर लौटता और दोबारा यही पुस्तक पढ़ता। एक दो बिन्दू और मिल जाते। मैं गुरूजी के पास लौटता वे और सवाल पूछते मैं फिर फेल होता। न मैं हारा न गुरूजी।
आखिरी कुछ बातें ह्रदय में बैठ गई। आमतौर पर कृष्णामूर्ति को किताबों के पढ़ने वाले लोग इन बातों को नजर अन्दाज कर जाते हैं। मैं उनमें से कुछ तथ्य पेश करना चाहूंगा जिससे आपको भी महसूस हो सके कि कैसे यह किताब ज्योतिषियों के लिए गीता के समान है।
किताब की शुरूआत में लेखक का इंटरव्यू दिया गया है। इसमें क्या ज्योतिष विज्ञान है विषय पर चर्चा है। एस्ट्रोलॉजी- एन ऑकल्ट साइंस विषय पर दिया गया है। इसके बाद ज्योतिष के इतिहास विषय के तहत ज्योतिष के क्षेत्र में हुए क्रमवार विकास के बारे मे जानकारी दी गई है। इसके बाद ज्योतिष अध्ययन की सीमाएं और ज्योतिषी की क्वालिफिकेशन के बारे में दिया गया है।
दृढ़ और अदृढ़ कर्म
कर्म को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा है। दृढ कर्म, अदृढ़ कर्म और दृढ-अदृढ़ कर्म। दृढ़ कर्म वे हैं जो इंसान समझ बूझकर पूरे वेग के साथ करता है। जैसे कत्ल। जिस व्यक्ति ने पिछले जन्म में दृढ़ कर्म किए हैं उन्हें इस जन्म में उनका भोग भोगना ही पड़ेगा। जिसे दृढृ अदृढ़ किए हैं यानि कत्ल तो हुआ लेकिन बिना समझ के।
उन लोगों को उपाय करने पर शांति मिल सकती है लेकिन सही उपाय होना संदिग्ध है। तीसरा है अदृढ़ कर्म। जैसे किसी दुर्घटना में खुद की गलती से किसी और की मौत। ऐसे में उपाय शांति दिला सकते हैं। इस तरह उपाय करने के बावजूद पूर्व कर्मों का असर इस जन्म में शांति की शर्त तय करता है।
किस ग्रह का उपाय होगा
बहुत स्पष्ट तो नहीं लेकिन किताब में जैसा लिखा है उसके अनुसार जिस ग्रह का संबंध लग्न या नवम भाव से है केवल उसी ग्रह का उपचार किया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि कुण्डली में जो ग्रह खराब हो उसी का उपचार कर दिया जाए। मूल रूप से लग्न आत्मा और नवम भाव भाग्य का होता है। वैसे एक स्थान पर कृष्णामूर्ति ने यह भी कहा है कि भाग्य को धोखा नहीं दिया जा सकता।
ज्योतिष की शाखाएं: केपी ने ज्योतिष की नौ शाखाओं का उल्लेख किया है। इसमें एस्ट्रोपैथोलॉजी, एस्ट्रो मैटीरियोलॉजी, मुण्डेन या ज्युडीशियल एस्ट्रोलॉजी, नेटल, हॉरेरी, इलेक्शनल, कबाला, केरला और ओमेन एस्ट्रोलॉजी शामिल है।
कौन पढ़ सकता है एस्ट्रोलॉजी
इस विषय के संबंध में उन्होंने ज्योतिषीय योगों की बजाय व्यक्तिगत गुणों के बारे में अधिक विस्तार से लिखा है। उन्होंने इसके लिए दस बिन्दू दिए हैं। यकीन मानिए मैं ग्यारह साल बाद भी उन बिन्दुओं पर खरा उतरने का प्रयास कर रहा हूं। इसके बाद उन्होंने पश्चिमी विद्वानों और भारतीय शास्त्रों में दिए गए योगो की जानकारी भी दी है।
राशियां, ग्रह और भाव
पृष्ठ संख्या 62 से 344 तक राशियों, ग्रहों और भावों के बारे में विशद वर्णन है। हां यह आम पुस्तकों से कहीं अलग और कई मायनों में विशिष्ट है। मैं वर्णन करने लगूंगा तो कई हजार शब्द खप जाएंगे। अगर आप भी ज्योतिष का अध्ययन शुरू करना चाहते हैं तो इस पुस्तक को आज ही ले आइए और पढ़ना शुरू कर दीजिए।