Home Jupiter (Guru | गुरु) केतु की महादशा में ग्रहों की अंतर्दशा का प्रभाव

केतु की महादशा में ग्रहों की अंतर्दशा का प्रभाव

केतु की महादशा मे ग्रहों की अंतर्दशा के प्रभाव | Effects of all planet's Antardasha in Ketu Mahadasha
केतु की महादशा मे ग्रहों की अंतर्दशा के प्रभाव | Effects of all planet's Antardasha in Ketu Mahadasha

केतु की महादशा में ग्रहों की अन्तर्दशा
Effects on All Planet’s Antardasha in Ketu Mahadasha

अमृत पीते हुए राक्षस की सूर्य और चंद्रमा ने चुगली की तो मोहिनी रूप में देवताओ को अमृत परोस रहे श्रीहरि ने जब सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। सिर भाग राहू बना तो धड़ वाला भाग केतू बना। यह धड़ वाला भाग रूपक के तौर पर पूंछ की तरह प्रस्तुत किया जाता है।

केतु के पास सिर नहीं है, ऐसे में दिमाग भी नहीं है, आंखें, कान, नाक और जीभ का भी अभाव है। केतु की महादशा को देखा जाए तो मोटे तौर पर यह ऐसी ही दिखती है। इस महादशा के दौरान अधिकांशत: जातक मोनोटोनस मोड में रहता है। कोई नया काम नहीं होता, नया प्रोजेक्टं नहीं होता, नई योजनाएं नहीं होती, कोल्हु के बैल की तरह जातक एक ही सर्किल में बार बार घूमता रहता है। शून्य से शुरूआत कर पुन: शून्य तक पहुंच जाता है।

कई बार केतु की महादशा में बड़े प्रोजेक्ट शुरू हो जाते हैं, तो सात साल का समय उनकी तैयारी में ही बीत जाता है। खराब बात यह है कि अधिकांशत: केतु में परिणाम नहीं मिलते। अच्छी बात यह है कि केतु के ठीक बाद शुक्र की महादशा होती है, जो बीस साल तक चलने वाली होती है। केतु के दौरान किए गए अधिकांश प्रयास शुक्र में परिणाम देने वाले होते हैं।

अगर एक ज्योतिषी के रूप में देखता हूं तो पाता हूं कि केतु की महादशा के दौरान अगर परिणाम न भी मिल रहे हों तो जातक को लगातार प्रयास करते रहने चाहिए, शुक्र में अपनी मेहनत का फल खाने के लिए। अगर केतु में पर्याप्त विफल प्रयास न किए जाएंगे तो बाद में आने वाली शुक्र की महादशा में शून्य से शुरूआत करनी पड़ती है।


केतु की महादशा में केतु की अन्तर्दशा
Ketu Mahadasha Ketu Antardasha

केतु की महादशा में केतु की अंतर्दशा 4 महीने 27 दिन की होती है।यदि केतु केन्द्र, त्रिकोण या आय स्थान में शुभावस्था में होकर लग्नेश, भाग्येश व कर्मेश से युक्ति करता हो तो केतु की महादशा में केतु का अंतर (Ketu mein Ketu | Ketu in Ketu) प्रारम्भ में शुभ फल प्रदान करता है। इस अन्तर्दशा में जातक को धन का सीमित लाभ, पशुधन व भूमि से लाभ, प्रगति व यश की प्रप्ति आदि कराता है ।

अशुभ केतु की अन्तर्दशा में जातक अथक पश्चिम करने पर भी जीविको पार्जन के साधन नहीं जुटा पाता। नौकरी नहीं मिलती, नौकरी हो तो नौकरी छूट जाती है या नौकरी से निकाल दिया जाता है। व्यवसाय में हानि होती है। जातक को किसी पशु (खासकर कुत्ते, गाय, बैल आदि) का भय रहता है। बचपन में यह दशा जातक को विषाणु या कीटाणु जनित बीमारियों जैसे चेचक, हैजा, अतिसार, कांच निकलना आदि रोगो से पीडित करती है। किसी निकट सम्बन्धी के निधन से मन को सन्ताप मिलता है। जातक एक दुख से पीडा छुड़ाता है तो दूसरा दुख उपस्थित हो जाता है। शत्रुओं से कलह होती है। मित्रों से विरोध होता है। अशुभ वचन सुनने पड़ते हैं। शरीर में बुखार तथा जलन की बीमारी होती है। संचित धन का नाश होता है।


केतु की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा
Ketu Mahadasha Shukra Antardasha

केतु की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा 1 वर्ष 2 महीने की होती है। शुक्र यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत या दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में शुक्र का अंतर (Ketu mein Shukra | Venus in Ketu) में जातक की बुद्धि कामासक्त हो सकती है। वह सदैव भोग विलासमय जीवन के स्वप्न देखता रह सकता है। प्रेमकथाएँ, उपन्यास आदि के पढ़ने में व्यर्थ समय को गंवा सकता है। नीच और भ्रष्ट स्त्रियों अथवा पुरूषों के साथ प्रेम-प्रसंगादि के कारण लोकोपवाद सहना पड़ता है। सुख सुविधा के साधन जुटाता है।

शुक्र अथवा केतु अथवा दोनों के अशुभ होने पर विभिन्न प्रकार के नकारात्मक प्रभाव प्राप्त होते हैं। स्कूल और कॉलेज जाने वाले युवक-युवतियां, इस दशाकाल में, एक-दूसरे के साथ भाग जाते है। नीच और भ्रष्ट स्त्रियों अथवा पुरुषों के साथ अनाधिकृत प्रेम प्रसंगों, अवैध संबंधो के कारण बदनामी होती है। अनीति और अधर्म के कार्यों, गैर कानूनी गतिविधियों, व्यसनों आदि में मन खूब लगता है। धनलिप्सा बढ़ जाती है, अधिकारी वर्ग रिश्वत लेते पकडे जाते है। पत्नी एव पुत्रों से कलह होती है। जातक वेश्यागमन, परस्त्रीगमन, सट्टा, जुएँ और मद्यपान में, अपनी अर्जित सम्पत्ति का नाश करता है। साइनस, शुक्रक्षय, प्रमेह व अन्य गुप्त रोगो से देह में पीडा होती है। मन में अपने मित्रों, सम्बन्धियों और परिवारजनों के प्रति इर्ष्या और द्वेष अपना स्थायी स्थान बना लेते है। जातक उन्नति की अपेक्षा अवनति को ही प्राप्त होता है। अपनी स्त्री तथा परिवार के लोगों से विवाद होता है। जातक के घर में कन्या का जन्म होता है। जातक की मानहानि होती है और उसे नीचा देखना पड़ता है।


केतु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा
Ketu Mahadasha Surya Antardasha

केतु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा 2 महीने 6 दिन की होती है। यदि शुभ और बलवान सूर्य हो तो शैय्या सुख, भौतिक सुख सुविधाएं, सरकार से फायदा, स्वल्प वैभव व तीर्थ यात्रा के अवसर प्राप्त होते हैं। विदेश यात्रा से लाभ होता है।

अशुभ सूर्य होने पर केतु की महादशा में सूर्य का अंतर (Ketu mein Surya | Sun in Ketu) आने पर जातक के मन में भ्रम व बुद्धि में आवेश आ जाता है। जातक व्यर्थ में क्रोध करता है। वाद-विवाद में पराजय का सामना करना पड़ता है। यात्रा प्रवास में धन हानि और देह कष्ट मिलता है। चोर, सर्प, अग्नि से भय रहता है। महत्वपूर्ण कार्यों में असफलता मिलने से मन में हीन भावना आ जाती है। अकाल मृत्यु का भय रहता है। किसी गुरुजन की मृत्यु हो सकती है। माता-पिता से विवाद होता है। अपने ही स्वजनों से विरोध का सामना करना पड़ सकता है। वात या कफ जनित रोग, ज्वर आदि बिमारियों से कष्ट भोगना पड़ता है। निकृष्ट भोजन खाने से देह मेँ विषाक्त प्रभाव हो सकता है। आंखों में जलन, पित्त में उग्रता तथा शिरोवेदना होती है। दुर्घटना में हड्डी टूटने का भय अथवा अंग-भंग होने की आशंका रहती है। सरकार से जुड़े मामलों में विवाद हो सकता है। अपने उच्चाधिकारियों से दंड प्राप्त होता है तथा पदोन्नति में बाधाओं का सामना होता है।


केतु की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा
Ketu Mahadasha Chandra Antardasha

केतु की महादशा में चन्द्रमा की अंतर्दशा 7 महीने की होती है। यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा आने पर जातक को मध्यम फल प्राप्त होते हैं। जातक को कुछ सुख व धन की प्राप्ति होती है। जातक के स्वभाव में चंचलता विद्यमान होती है। नौकरों से लाभ प्राप्त होता है। कन्या-सन्तति की प्राप्ति होती है। अचानक बहुत धन का लाभ होता है।

यदि केतु अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं चंद्रमा नीच राशि या शत्रु राशि मे हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा में चन्द्रमा का अंतर (Ketu mein Chandrama | Moon in Ketu) आने पर जातक को अचानक बहुत धन का लाभ होने के साथ साथ बहुत धन का नुकसान भी होता है। पुत्र से विरह हो सकता है, घर में ऐसी संतान पैदा होती है जिसके कारण दु:ख उठाना पड़े। जातक काम वासना से आसक्त रहता है। जातक को अनैतिक और असामाजिक कार्यो से बदनामी मिलती है। जातक भावुकता में विवेकहीन होकर हानिप्रद कार्य करता है।


केतु की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा
Ketu Mahadasha Mangal Antardasha

केतु की महादशा में मंगल की अंतर्दशा 4 महीने 27 दिन की होती है। यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में मंगल की अंतर्दशा हो तो जातक में उत्साह और पराक्रम की प्रवृति बढ़ जाती है। मंगल पराक्रमी ग्रह है तथा केतु में भी मंगल के गुणो की प्रधानता है, इसलिए शुभ और बलवान मंगल की अन्तर्दशा में जातक के उत्साह में वृद्दि हो जाती है। जातक साहसिक और पराक्रम युक्त कार्यों में विशेष रूचि लेता है तथा इनमें सफल होकर मान-सम्मान प्राप्त करता है। जातक सैन्य कर्मचारी हो तो पदोन्नति, सेवापदक, पुरस्कार तथा धन मिलता है।

यदि केतु अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं मंगल नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, तो केतु की महादशा में मंगल का अंतर (Ketume in Mangal | Mars in Ketu) आने पर जातक की हिंसक प्रवृत्ति और ज्यादा उग्र हो जाती है। जातक क्रोध में हत्या तक कर सकता है और फलस्वरुप कारावास दण्ड अथवा मृत्युदण्ड पाता है। जातक अनियंत्रित खाने के कारण बीमार हो जाता है। जातक रक्तविकार, रक्तचाप, रक्तार्श, फोड़ा-फुन्सी एवं उदर व्याधि से पीडित होता है। अपने माता पिता और घर के बड़े लोगों से कलह-विवाद होता है। भाई बन्धुओं का नाश होता है। जातक को सर्प, चोर और अग्नि से भय होता है। शत्रु से कष्ट प्राप्त होता है।


केतु की महादशा में राहु की अन्तर्दशा
Ketu Mahadasha Rahu Antardasha

केतु की महादशा में राहु की अंतर्दशा 1 साल 8 महीने की होती है। यदि राहु शुभ राशिगत होकर केन्द्र, त्रिक्रोण अथवा शुभ स्थान में हो, उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो और केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं ऊच्च, मित्र या स्वराशि मे स्थित हो तो केतु की महादशा में राहु अंतर्दशा में जातक को आकस्मिक धनलाभ एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। विदेश में रहने वालों से जातक को लाभ प्राप्त होता है। मलेच्छ (निम्न वर्ग के) व्यक्ति की सहायता प्राप्त होती है। जातक के लिए चौपायों (मवेशियों) का व्यवसाय लाभप्रद रहता है। जातक ग्रामसभा (मोहल्ला सभा, विकास समिति, जिला / राज्य स्तरीय सभा समिति आदि) का सदस्य (मंत्री, सचिव, अध्यक्ष आदि) बनता है।

यदि केतु अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं राहु नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा में राहु का अंतर (Ketu mein Rahu | Rahu in Ketu) में जातक को अनुचित कर्मो से धन मिलता है। सभी कार्यो में जातक में जातक को असफलता मिलती है। शत्रुओं के कारण कलह होती है। राजा से (सरकार से) विवाद और पराजय का भय होता है। अग्नि, दुर्घटना, सर्पदंश और चोर से भय होता है। जातक मृत्यु से साक्षात्कार कर सकता है, अथवा मृत्युतुल्य कष्ट भोग सकता है। रीढ के हड्डी में दर्द, वातरोग, आफरा, मन्दाग्नि, विषम ज्वर आदि से शरीर में पीड़ा होती है। जातक दूसरे व्यक्तियों को हानि पहुंचाने वाले कर्म करता है। दुष्ट लोगों से कठोर बाते सुननी पड़ती है। बंधुओं और परिवारजनों से कलह और वियोग होती है। महत्वपूर्ण कार्यो में असफलता प्राप्त होती है। राहु यदि सप्तमेश से युक्त हो तो जीवनसाथी की मृत्यु अथवा तलाक हो जाता है।


केतु की महादशा में गुरु की अन्तर्दशा
Ketu Mahadasha Guru Antardasha

केतु की महादशा में गुरु (बृहस्पति) की अंतर्दशा 11 महीने 6 दिन की होती है। यदि गुरु (बृहस्पति) उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युक्त व दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में गुरू (बृहस्पति) की अंतर्दशा में जातक का मन शांत रहता है एवं धार्मिक कार्यो में रूचि लेता है। तीर्थयात्रा तथा देशाटन में धन का व्यय होता है। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जातक की उन्नति होती है। जातक के मन में उत्साह बना रहता है। देवताओं, ब्राहमणों के प्रति निष्ठा रहती है, गौसेवा में रत रहता है, और इनकी कृपा से अचल सम्पत्ति का लाभ होता है। जातक के विचार सात्विक एवं उच्च हो जाते हैं। स्व्यध्याय, मन्त्र साधना और देव भक्ति में खूब मन लगता है। जातक को पुत्र रत्न प्राप्ति होती है। भूमि की प्राप्ति व भूमि से धन की प्राप्ति होती है। आमदनी में बढ़ोतरी होती है, जगह-जगह से भेंट मिलती हैं। राजा या सरकार से सम्मान प्राप्त होता है।

यदि केतु अशुभ प्रभायुक्त हो एवं गुरू नीच राशि या शत्रु में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा में गुरू का अंतर (Ketu mein Guru | Jupiter in Ketu | Guru in Ketu) आने पर जातक को यात्रा – प्रवास अधिक करने पड़ते हैं। यात्रा में चोरों या ठगो द्वारा संपत्ति की हानि होती है। निम्न वर्ग के लोगो से वाद विवाद होने के कारण अपयश होता है। जीवनसाथी से वियोग होता है, जीवनसाथी को स्वास्थय सम्बन्धी दिक्कतें होती है।


केतु की महादशा में शनि की अन्तर्दशा
Ketu Mahadasha Shani Antardasha

केतु की महादशा में शनि की अंतर्दशा 1 साल 1 महीने और 9 दिन की होती है। यदि शनि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में शनि की अंतर्दशा में जातक को मध्यम शुभ फल प्राप्त होते हैं। जातक के कार्य कुछ विलंब के बाद पूर्ण हो जाते हैं। स्वग्राम में मुखिया अथवा ग्रामसभा का सदस्य बनता है। लोहे, लकड़ी आदि के व्यवसाय में लाभ मिलता है।

यदि केतु अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं शनि नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा में शनि का अंतर (Ketu mein Shani | Saturn in Ketu) में जातक अनेक कष्ट भोगता हैं। जीवकोपार्जन के लिए जातक को भटकना पड़ता है। कठिन परिश्रम करने पर भी जातक का कार्य सिद्ध नहीं हो पाता है। भाई बन्धुओं से जातक के मतभेद होते हैं। जायदाद के मुकदमें में जातक की हार हो सकती हैं। परदेशगमन होता है। जातक की धर्म की अपेक्षा अधर्म व अनैतिक कार्यों में रूचि रहती है। अशुभ समाचार सुनने को मिलते हैं। शत्रु प्रबल हो जाते हैं तथा षड्यंत्र कर के हमला करते है। विषाक्त भोजन ग्रहण करने से जातक बीमार हो सकता है। वात, कफ, श्वास, गठिया, मन्दाग्नि आदि से सम्बंधित रोग हो जाते हैं। जातक का अंग भंग हो सकता है।


केतु की महादशा में बुध की अन्तर्दशा
Ketu Mahadasha Budh Antardasha

केतु की महादशा में बुध की अंतर्दशा 11 महीने 27 दिन की होती है। यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में बुध की अंतर्दशा हो तो जातक को शुभ फल मिलते हैं। जातक शनि दशाकाल में प्राप्त दुःखों से छुटकारा पाकर काफी हद तक सुख की सांस लेता हैं। अध्ययन सम्बन्धी गतिविधियों में जातक की रूचि बढती है। बुद्धिजीवियों के साथ मेल जोल बढ़ता है। आत्मजनों से मेल मिलाप एवं सम्पत्ति लाभ होता है। पुराने मित्रों के साथ सुखमय समय व्यतीत करने के अवसर प्राप्त होते हैं। नवीन ज्ञान की प्राप्ति होती है। कार्य-व्यवसाय में प्रगति होती है। समाज में मान सम्मान मिलता है। जातक के रुके हुए कार्य पूरे हो जाते हैं।

यदि केतु अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं बुध नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा में बुध का अंतर (Ketu mein Budh | Mercury in Ketu) आने पर जातक को कार्य व्यवसाय में हानि होती है। गृह-क्लेश बढ़ जाता है। मित्र भी शत्रुवत् व्यवहार करते हैं। शत्रुं, चोरों और ठगों से सम्पत्ति हानि का भय रहता है। तथा संतान को रोग पीड़ा आदि मिलती है। मानसिक सन्ताप की अधिकता रहती है। तथा देह को वात, पित्तजन्य रोग, उदरशूल, गठिया आदि से कष्ट मिलता है।किसी बड़े शत्रु द्वारा जातक सताया जाता है। पशु और खेती से नुकसान उठाना पड़ता है।

Astrologer Sidharth
+919413156400