राहु की महादशा मे सभी ग्रहों की अंतर्दशा | Rahu ki Mahadasha mein Graho ki Antardasha
राहु की महादशा मे सभी ग्रहों की अंतर्दशा | Rahu ki Mahadasha mein Graho ki Antardasha

राहु की महादशा मे ग्रहों की अंतरदशा का प्रभाव
Effects of all planet’s Antardasha in Rahu Mahadasha

कुण्‍डली के सर्वाधिक नकारात्‍मक ग्रहों में से एक है राहु। तकनीकी तौर पर राहु का कोई शरीर नहीं है। बिना द्रव्‍यमान के इस ग्रह को सूर्य और चंद्रमा के आभासी पथ के संपात कोण पर माना गया है। पृथ्‍वी पर खड़े प्रेक्षक को आसमान में सूर्य और चंद्रमा दोनों ही पृथ्‍वी का चक्‍कर लगाते हुए नजर आते हैं। इस परिभ्रमण पथ में उत्‍तर की ओर जहां दोनों का पथ एक दूसरे को काटता है, वहीं पर राहु है। ज्‍योतिषीय गणनाओं की दृष्टि से सूर्य और चंद्रमा सदैव मार्गी रहते हैं, यही कारण है कि राहु सदैव वक्री रहते हैं। इस वक्रता का परिणाम जातक की कुण्‍डली में भी दिखाई देता है।

राहु को हम Planet of Uncertainty कह सकते हैं, यानी अनिश्चितता का ग्रह। चलते हुए व्‍यापार को ठप कर देना, अच्‍छी छवि को धूमिल कर देना, बिना ठोस कारणों के नौकरी छूट जाना, ऐसे रोग प्रकट होना जिनका सही रूप से निदान न हो, ऐसी समस्‍याएं सामने आना जिनका तात्‍कालिक कोई हल न दिखाई दे, ऐसे लाभ मिलना जिनकी पूर्व में कोई तैयारी नहीं की गई थी, ऐसे नुकसान होना जिनके बारे में पहले कभी विचार नहीं किया गया था।

Uncertainty Of Rahu and Corporate / MNC Jobs

राहु की अन‍िश्चितता, लाभ और हानि, दोनों मामलों में हावी रहती है। बिल्‍कुल बारिश के आधार पर की जाने वाली कृषि की तरह। उसमें बंपर फसल भी आ सकती है और पूरी फसल मिट्टी भी हो सकती है।

राहु की दुश्‍वारियां धीरे धीरे बढ़ती हैं और जातक से ठोस निर्णय की मांग करती है, जब तक जातक निर्णय लेने से बचता रहता है, राहु का दुष्‍प्रभाव भी कम रहता है। लेकिन कठिन निर्णय लेकर, कैपिटल इन्‍वेस्‍टमेंट करके, दूसरों पर भरोसा करके जातक आखिरकार फंस ही जाता है। राहु द्वारा मिली झूठी आशाओं का परिणाम यह होता है कि शुरूआती थोथी सफलताओं के बाद जातक और अधिक बुरी तरह फंस जाता है। इसका भी एक क्रम होता है। पहले राहु मानस पर हमला करता है, फिर शरीर पर हमला करता है और आखिर में अर्थ पर। तीनों कोण पर तनाव की स्थिति लगातार बनी ही रहती है।

राहु की महादशा का प्रभाव, फल और उपाय
Rahu Mahadasha: Effects and Remedies

राहू की महादशा के पूरे 18 साल एक जैसे नहीं होते, इसमें भी उतार चढ़ाव का दौर जारी रहता है। प्रत्‍येक लग्‍न में कारक ग्रहों, अनुकूल और प्रतिकूल ग्रहों का परिणाम अलग अलग तरीके से सामने आता है, साथ ही कुण्‍डली में राहु की स्थिति के अनुसार फल न्‍यूनाधिक होते हैं, फिर भी मोटे तौर पर राहु की अठारह साल की महादशा को मोटे तौर पर नौ भागों में बांटे तो राहु की महादशा मे सभी ग्रहों की अंतर्दशा के फल कुछ इस प्रकार आएंगे।


राहु की महादशा में राहु की अंतर्दशा
Rahu Mahadasha Rahu Antardasha

राहु की महादशा में राहु का अंतर (Rahu mein Rahu | Rahu in Rahu) 2 साल, 8 महीने और 12 दिन का होता है। कुंडली में राहु यदि उच्च राशि, मित्र राशि और शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो शुभ फल प्राप्त होते हैं। शुभ राहु की दशा एवं अन्तर्दशा में जातक को आकस्मिक व अचानक उन्नति व धनलाभ होता है। जातक को अधिकार की प्राप्ति होती है। जातक का राजनीति के प्रति रूझान बढ़ता है।

अशुभ राहु की स्थिति में इस अवधि में जातक को अपमान और बदनामी का सामना करना पड़ सकता है। विष और जल के कारण पीड़ा हो सकती है। विषाक्त भोजन, से स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। अपच, सर्पदंश, परस्त्री या पर पुरुष गमन, किसी प्रिय से वियोग, समाज में अपयश, निंदा की आशंका भी इस अवधि में बनी रहती है। अगर कुण्‍डली में मंगल अनुकूल हो, पूर्ववर्ती मंगल की महादशा अनुकूल रही हो तो राहु में राहु के दौरान कमोबेश दुश्‍वारियां कम देखने को मिलती हैं।


राहु की महादशा में गुरु की अंतर्दशा
Rahu Mahadasha Guru Antardasha

राहु की महादशा में गुरु का अंतर (Rahu mein Guru | Jupiter in Rahu) 2 साल, 4 महीने और 24 दिन का होता है। राहु शुभ राशि व प्रभाव में हो तो गुरू की अन्तर्दशा जातक को उन्नति दिलाती है। प्रायः राहु की महादशा में गुरू की अंतर्दशा मध्यम प्रभाव की होती है। तंत्र-मंत्र इत्यादि में भी जातक की रूचि बढ़ती है। जातक अनेकबार अनसोचे कार्य करता है। जातक के मन में श्रेष्ठ विचारों का संचार होता है और उसका शरीर स्वस्थ रहता है। धार्मिक कार्यों में उसका मन लगता है।

यदि कुंडली मे गुरु अथवा राहु अशुभ हो तो राहु की महादशा में गुरू की अंतर्दशा जातक की बुद्धि मलिन करने वाली होती है। जातक अपनी कुबुद्धि के कारण अपना नुकसान करता है। जातक को दण्ड मिलने की संभावना भी रहती है। जातक धार्मिक कृत्यों से विमुख होता है, और कमजोर स्वास्थ्य से दुखी होता है।


राहु की महादशा में शनि की अंतर्दशा
Rahu Mahadasha Shani Antardasha

राहु की महादशा में शनि का अंतर (Rahu mein Shani | Saturn in Rahu) 2 साल, 10 महीने और 6 दिन का होता है। राहु और शनि के शुभ होने अथवा जन्म पत्री में मित्र, उच्च या स्वराशिगत होने की स्थिति में व शुभ ग्रहों द्वारा युत या दृष्ट होने की स्थिति में जातक को राहु की महादशा में शनि की अंतर्दशा आने पर लाभ व सम्मान प्राप्त होता है। पश्चिम दिशा और निम्न वर्ग से जातक को विशेष लाभ होता है। काले पशुधन व काली वस्तुओं की व्यापार से लाभ, पशु वाहन की प्राप्ति होती है समाज में और अपने वर्ग में सम्मान मिलता है।

अशुभ प्रभाव होने की अवस्था मे इस अवधि में परिवार में कलह की स्थिति बनती है। तलाक भाई, बहन और संतान से अनबन, नौकरी में या अधीनस्थ नौकर से संकट की संभावना रहती है। शरीर में अचानक चोट या दुर्घटना के दुर्योग, कुसंगति आदि की संभावना भी रहती है। साथ ही वात और पित्त जनित रोग भी हो सकता है। जातक अस्थिर मति या किसी अज्ञात पीड़ा से विकल हो कर मलीन वस्त्र धारण कर इधर-उधर भटकता है। किसी परिजन की मृत्यु से मन को संताप पहुँच सकता है। जातक में आत्महत्या की प्रवृति उत्पन्न हो सकती है।


राहु की महादशा में बुध की अंतर्दशा
Rahu Mahadasha Budh Antardasha

राहु की महादशा में बुध का अंतर (Rahu mein Budh | Mercury in Rahu) 2 साल, 6 महीने और 18 दिन का होता है। राहु और बुध के शुभ होने की स्थिति में जातक उत्तम विद्या प्राप्त करता है। प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो सकता है। जातक की चित्तवृत्ति स्थिर और बुद्धि सात्विक हो जाती है। अपने मित्रों, परिजनों से संबंध प्रगाड़ होते है। आय के कई स्रोत बनते हैं, जिसके कारण आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है।

अशुभ प्रभाव होने की स्थिति में जातक घोर कष्ट पाता है। अनेक कार्यों में विफलता मिलती है। नौकरी में उन्नति नहीं होती है। राजकोप का भागी होना पड़ता है। जातक असत्य भाषण करता है। जिसके कारण उसको अपयश प्राप्त होता है। जातक की बुद्धि दुष्ट होती है। उसके भाग्य में रूकावटे आती हैं। जातक चर्म रोग से भी पीड़ित रहता है।


राहु की महादशा में केतु की अंतर्दशा
Rahu Mahadasha Ketu Antardasha

राहु की महादशा में केतु का अंतर (Rahu mein Ketu | Ketu in Rahu) 1 साल और 18 दिन का होता है। इस अन्तर्दशा में आमतौर पर अशुभ फल ही होता है । ज्वर, अग्नि, शस्त्र और शत्रुओं से भय होता है। मस्तिष्क के रोग और शरीर में कम्पन हो सकता है। जातक की अपने मित्रों और शुभचिंतकों से कलह हो सकती है। गुरु जनों को व्यथा होती है। जातक की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। नीच जनों की संगति कर दुष्कर्म करने की प्रवृति होती है। जातक बुरे व्यसनों में लिप्त रहता है। जातक के घर में कलह का वातावरण बना रहता है। उदर पूर्ति के लिए भटकना पड़ता है। निर्धनता और रोगों के कारण मार्ग में और विदेश में कष्ट भोगने पड़ते हैं।


राहु की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा
Rahu Mahadasha Shukra Antardasha

राहु की महादशा में शुक्र का अंतर (Rahu mein Shukra | Venus in Rahu) 3 साल का होता है। राहु की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा जब शुभ प्रभाव देती है तो जातक को अनेक भोग प्राप्त होते हैं। जातक का मन चंचल रहता है। जातक जीवन के दो छोरों में रहता है जैसे कभी विलासिता पूर्ण जीवन जीता है तो कभी धर्मिक व शुभ ग्रंथों का अध्ययन करता हैं। दाम्पत्य जीवन में सुख मिलता है। वाहन और भूमि की प्राप्ति तथा भोग-विलास के योग बनते हैं। कामवासना प्रबल होती है, लेकिन अपने जीवनसाथी तक ही सीमित रहता है। विलासिता की वस्तुओं का संग्रह करता है। मनोरंजक गतिविधियों आदि मे व्यस्त रहता है।

अशुभ प्रभावों की स्थिति में जातक के सुख का नाश हो जाता है। स्वजनों से विरोध पनपता है। सन्तान से दुख पहुँचता है। पड़ौसियों से लड़ाई-झगड़ा, धातु क्षय, मंदाग्नि आदि रोग हो जाते हैं। शुक्र अष्टमेश हो तो मृत्युतुल्य कष्ट मिलता है। बदनामी और विरोध का सामना करना पड़ सकता है।


राहु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा
Rahu Mahadasha Surya Antardasha

राहु की महादशा में सूर्य का अंतर (Rahu mein Surya | Sun in Rahu) 10 महीने और 24 दिन का होता है। राहु शुभ तथा सूर्य उच्च राशि, मूल त्रिकोण व स्वराशि तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो राहु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा में जातक का कार्य एवं व्यवसाय फैलता है। जातक को धन धान्य की प्राप्ति होती है। जातक राजनीति के क्षेत्र में मान पाता है। जातक को पैतृक सम्पत्ति मिलती है। जातक दिखावें व प्रशंसा प्राप्त करने के लिए दान धर्म करता है। राजकृपा से स्वल्प सुख, धन-धान्य में वृद्धि होती है। जातक राजनीति के क्षेत्र में माना जाता है तथा कई सभाओं का प्रधान या मुखिया बनता है।

मगर सामान्यतः यह समय अशुभ प्रभाव देने वाला ही होता है। इस अवधि में शत्रुओं से संकट, शस्त्र से घात, अग्नि और विष से हानि, आंखों में रोग, राज्य या शासन से भय, परिवार में कलह आदि हो सकते हैं। जातक के रुधिर में उष्णता बढ़ जाती है। क्रोध अधिक आता है। अकारण किसी से भी झगड़ने की इच्छा होती है। पिता को कष्ट मिलता है। व्यापार में हानि, नौकरी में उच्चाधिकारियों से विरोध के कारण अवनति, शिरोवेदना, नेत्र पीड़ा, वात रोग, गठिया, सर्वांगशूल, अर्श और रक्तातिसार जैसे रोग देह को पीड़ा देते हैं।


राहु की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा
Rahu Mahadasha Chandra Antardasha

राहु की महादशा में चंद्रमा का अंतर (Rahu mein Chandra | Moon in Rahu) 1 साल और 6 महीने का होता है। शुभ प्रभाव होने पर जातक ललित कला के क्षेत्र में उन्नति करता है तथा सम्मान पाता है। जातक को मध्यम फल प्राप्त होता है। आत्मजनों के आशीर्वाद से सुखमय जीवन व्यतीत करता है। जातक राज्यस्तरीय सम्मान पाता है। बुद्धि स्थिर व विचार धार्मिक होते हैं। श्वेत खाद्य पदार्थों (जैसे दूध, दही, खोया, आदि) को विशेष रूप से ग्रहण करता है। आत्मजनों के आशीर्वाद से सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

अशुभ प्रभाव होने की दशा में जातक को असीम मानसिक कष्ट होता है। इस अवधि में जीवन साथी से अनबन, तलाक या मृत्यु भी हो सकती है। लोगों से मतांतर, आकस्मिक संकट एवं जल जनित पीड़ा की संभावना भी रहती है। इसके अतिरिक्त पशु या कृषि की हानि, धन का नाश, संतान को कष्ट और मृत्युतुल्य पीड़ा भी हो सकती है। जातक वात के कुपित हो जाने से मानसिक एवं शारीरिक कष्ट भोगता है। भूत-पिचाश आदि से मन में भय उत्पन्न होता है। वायुजनित रोग एवं शीतज्वर से पीड़ा मिलती है। देह में जल का संचय अधिक होने से मोटापा आता है। जातक अस्थिर प्रवृत्ति का एवं चिंताग्रस्त रहता है।


राहु की महादशा में मंगल की अंतर्दशा
Rahu Mahadasha Mangal Antardasha

राहु की महादशा में मंगल का अंतर (Rahu mein Mangal | Mars in Rahu) 1 साल और 18 दिन की होती है। शुभ राहु में मंगल उच्च या स्वराशि का होकर केन्द्र या त्रिकोण में शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट होकर स्थित हो तो राहु महादशा में मंगल अन्तर्दशा में शुभ फल प्राप्त होते हैं। जातक उत्साही रहता है। व अपने विरोधियों पर विजय पाता है।

मिश्रित अथवा अशुभ प्रभाव होने पर जातक के बन्धु वर्ग का नाश होता है। पुत्र सुख में कमी आती है। चोर, सर्प, अग्नि का भय रहता है। दुर्घटना से देह पीड़ा भुगतानी पड़ती है। समाज में तिरस्कार पाता है। उदर पूर्ति के लाले पड़ जाते हैं। भींख माँगने की नौबत आ जाती है। जीवन भार लगने लगता है। आत्महत्या की प्रवृति भी बलवती हो सकती है। मंगल अष्टमेश से सम्बन्धित हो तो मृत्यु अथवा मृत्युतुल्य कष्ट मिलता है।


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