ज्योतिषी (Astrologer) जब किसी कुण्डली का विश्लेषण करता है तो पूर्व में तय किए गए सिद्धांतों और गणितीय गणनाओं के अतिरिक्त उसके पास भविष्य में झांकने के लिए एक और महत्वपूर्ण औजार है ओमेन या संकेत (Omen or Sanket)। किसी भी व्यक्ति अथवा व्यवस्था के निकट भविष्य की जानकारी देने के लिए प्रकृति लगातार संकेत देती रहती है। इन संकेतों को एक ज्योतिषी अपने अंतर्ज्ञान से पकड़ पाता है।
पूर्व में जहां संकेतों को ज्योतिषीय गणनाओं से भी अधिक महत्व दिया जाता रहा है, वहीं वर्तमान दौर में ज्योतिषी संकेतों को दरकिनार कर केवल कुण्डली से निकाले जाने वाले फलादेशों पर ही निर्भर होते जा रहे हैं। ओमेन को समझाने के लिए दक्षिण के प्रसिद्ध ज्योतिषी प्रोफेसर के.एस. कृष्णामूर्ति (KP Astrology) ने अपनी पुस्तक फण्डामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्टोलॉजी में एक उदाहरण दिया है। पिछले कई दशकों में ओमेन को समझाने के लिए इसे सबसे शानदार उदाहरण माना गया है। इस उदाहरण से यह भी पता चलता है कि ओमेन को समझने के लिए हमें प्रकृति को समझने की अपनी दृष्टि भी विकसित करनी होगी।
“एक ज्योतिषी अपने शिष्यों को ज्योतिष का पाठ पढ़ा रहा था। इसी दौरान उसके पास एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आता है और बताता है कि उसकी पत्नी उसे छोड़कर जा चुकी है। ठीक उसी समय ज्योतिषी की पत्नी कमरे में आती है और बताती है कि कुएं से पानी निकालने के दौरान रस्सी टूट गई और बाल्टी कुएं में जा गिरी है।
ज्योतिषी अपने शिष्यों से पूछते हैं कि व्यक्ति के सवाल और अभी मिले संकेत से क्या अर्थ लगाए जा सकते हैं। इस पर सभी शिष्य एक मत थे कि दोनों का संबंध बनाने वाली रस्सी के टूट जाने का अर्थ है कि जातक की पत्नी लौटकर नहीं आएगी। ज्योतिष गुरु मुस्कुराए। उन्होंने कहा नहीं, ऐसा नहीं है। हकीकत में पानी से पानी को अलग करने वाला तत्व (रस्सी) समाप्त हो गया है। ऐसे में पानी फिर से पानी में जा मिला है।
इससे संकेत मिलता है कि जातक की पत्नी शीघ्र लौट आएगी। ज्योतिषी ने जातक से कहा कि वह घर जाए, उसकी पत्नी शीघ्र लौटने वाली है। उसी दिन शाम तक जातक की पत्नी लौट आई।’’
हम आम जिंदगी में भी रोजाना ऐसे संकेतों (Signs) से रूबरू होते हैं। घर से निकलते ही मिलने वाले संकेतों से हमारा अवचेतन (Subconscious) स्वत: कयास लगाने लगता है कि आज का दिन कैसा जाएगा। बस अंतर यह है कि यहां हमारा अवचेतन काम कर रहा होता है। वह हम अपने तरीके से समझाने की कोशिश करता है कि भविष्य के क्या संकेत हैं। संकेतों को भी ज्योतिषियों ने संकेतों के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू किया होगा, कालान्तर में उन्हीं संकेतों को शकुन और अपशकुन के तौर पर विकृत रूप से इस्तेमाल किया जाने लगा। जबकि ये महज जातक के भविष्य का संकेत मात्र हैं, न कि शकुन अथवा अपशकुन देने वाले तत्व की समस्या।
शकुन और अपशकुन (Shakun/apshakun)
पंडित नेमीचंद शास्त्री ने भद्रबाहु संहिता (Bhadrabahu Samhita) में ऐसे ही संकेतों का विस्तार से वर्णन किया है। हालांकि इस संहिता का अधिकांश भाग मण्डेन से संबंधित है। यह प्रकृति के संकेतों से प्रांत, स्थान विशेष, राष्ट्र अथवा राजा से संबंधित सवालों के जवाब देते हैं, लेकिन इनमें भी कुछ संकेत ऐसे भी बताए गए हैं जिन्हें हम आमतौर पर जिंदगी में देखा करते हैं। हर्षचरित में बाण शत्रुओं को मिल रहे खराब संकेतों के बारे में जानकारी देते हैं।
मसलन, दिन में सियार मुंह उठाकर रोने लगे, जंगली कबूतर घरों में आने लगे, बगीचों में असमय फूल खिलने लगे, घोड़ों ने हरा धान खाना बंद कर दिया, रात में कुत्ते मुंह उठाकर रोने लगे, महलों के फर्श से घास निकल आई। ऐसे सभी संकेत वास्तव में बाण ने यह बताया कि शत्रुओं को अपनी पराजय संकेतों में दिखाई देने लगी थी। एक सामान्य व्यक्ति भी घर से निकलते समय दूध का सामने आना, सफाईकर्मी का सामने पड़ना, छींक आना या ऐसे सैकड़ों लक्षण जानता है। पीढि़यों से ये संकेत हमारी मदद करते रहे हैं और आज भी भविष्य का सटीक संकेत देने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न ज्योतिष में ओमेन (Omen in Prashna Jyotish)
प्रश्न कुण्डली से फलादेश देने की विधियों में ओमेन की सहायता प्रमुखता से ली जाती रही है। प्रश्नकर्ता के ज्योतिषी के पास पहुंचने और उसके उठने बैठने की रीतियों से ही सवाल का अधिकांश जवाब मिल जाता है, बाद में प्रश्न कुण्डली से अगर संकेतों की सहायता कर रहे योग मिल रहे हों तो सटीक उत्तर मिलता है।
प्रश्नकर्ता के बोले गए शब्दों में प्रथम शब्द, उसका अपने शरीर के किस अंग पर स्पर्श है, उसके चेहरे की दिशा किस ओर है, उसकी नासिका का कौनसा स्वर चल रहा है, प्रश्नकर्ता की शारीरिक और मानसिक चेष्टाएं प्रश्नकर्ता के प्रश्न का सहायक अंग मानी गई हैं। ऐसे में जातकों को सलाह दी जाती है कि प्रश्नकर्ता ज्योतिषी के पास जाते समय फल, पुष्प, मांगलिक पदार्थ और द्रव्य हाथ में लेकर ज्योतिषी के पास जाएं और पूर्वमुख होकर प्रणाम कर अल्प शब्दों में अपना प्रश्न रखे।
स्वर की भूमिका और इसे बदलना (Significance of Swar)
हम कोई काम शुरू करें, तो उसमें सफलता मिलेगी या नहीं। अगर सफलता मिलेगी तो कितनी। इसका तुरंत जवाब हमारा स्वर दे देता है। हमारे नाक की दो नासिकाएं हैं। आमतौर पर एक समय में केवल एक नासिका से ही श्वसन किया होती है।
बाईं नासिका को बायां स्वर या चंद्र अथवा इडा नाड़ी (Ida) और दाईं नासिका को दायां स्वर या सूर्य अथवा पिंगला (Pingla) नाड़ी कहा जाता है। आदर्श स्थिति यह है कि सूर्योदय से ढाई-ढाई घड़ी (करीब एक घंटे) में स्वर बदलता रहता है।परिस्थितिवश बहुत बार ऐसा नहीं होता है। जब कभी दोनों स्वर चलते हैं तो उसे सुषुम्ना कहा जाता है। प्रकृति के आधार पर इडा नाड़ी तम प्रधान है, पिंगला रज प्रधान और सुषुम्ना सत्व प्रधान नाड़ी है। बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और सोमवार को इडा नाड़ी सूर्योदय से चलनी चाहिए, रविवार, शनिवार और मंगलवार को पिंगला नाड़ी सूर्योदय से चलनी चाहिए। जो नाड़ी चल रही हो उसे बदलने के लिए भी कई उपाय बताए गए हैं। पातंजलयोग प्रदीप में बताया गया है कि जिस स्वर को चलाना हो उस पर कुछ समय तक ध्यान केन्द्रित करने पर वह स्वर चलने लगता है। जो स्वर चल रहा हो उसके विपरीत करवट लेकर पसली के नीचे तकिया देकर लेटने से दूसरी नाड़ी चलने लगती है। जो स्वर चलाना हो उसके विपरीत नासिका में रूई अथवा कपड़ा दबाने पर स्वर बदल जाता है। दौड़ने, परिश्रम करने अथवा प्राणायाम से भी स्वर बदलता है।
तोते को भी मिलते हैं भविष्य के संकेत (Parrot Astrology)
अभी अधिक समय नहीं बीता है जब मीडिया पर फुटबॉल के साथ पॉल बाबा राज कर रहे थे। वर्ल्ड कप में शामिल हुई टीमों के विश्लेषकों और खेल के जानकारों को भले ही कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन एक अदने से ऑक्टोपस ने खेल दर खेल सफल भविष्यवाणियां की। यह आसान काम नहीं था, लेकिन पॉल बाबा ने कर दिखाया।
भारत में यह काम सैकड़ों वर्षों से होता रहा है, वह है तोते से भविष्यफल करवाने का। बहुत से लोग तोते वाले के पास जाते हैं, उसे दस या बीस रुपए देते हैं, तोते का मालिक तोते को पिंजरे से बाहर निकालता है, तोता तरतीब से फैलाए हुए कार्ड्स में से एक कार्ड का चुनाव करता है। तोते का मालिक उस कार्ड को हाथ में लेता है और पूछने वाले को उसका भविष्य बता देता है। ज्योतिष की ओमेन शाखा संकेतों के विज्ञान पर काम करती है। आपने पॉल (अरे अब पॉल बाबा की बात नहीं कर रहा मैं कह रहा हूं पॉल कोएलो) के बारे में सुना होगा। अरे वही एल्केमिस्ट वाले। उन्होंने अपने नॉवेल में लिखा कि जब हम किसी चीज को शिद्दत से चाहते हैं तो पूरी कायनात उसे हमसे मिलाने की साजिश करती है। (हां, आपको याद आ गया यह तो ओम शांति ओम फिल्म में था, लेकिन यकीन मानिए ओम शांति ओम में पॉल के उपन्यास से चुराया हुआ वाक्य है। इस फिल्म का दूसरा डॉयलॉग ऑरीजिनल हो सकता है ‘मेरे दोस्त, पिक्चर अभी बाकी है’)
हां, तो वापस बात करते हैं कि पॉल कोएलो के एल्केमिस्ट की। उन्होंने एक कीमियागर (रसायनों की मदद से सोना बनाने का प्रयास करने वाले) की सोने की खोज के साथ यह वाक्य जोड़ा था। इसका कांसेप्ट यह है कि पूरी सृष्टि के तार आपस में जुड़े हुए हैं। यदि हम दिल से चाहें तो सृष्टि हमें अपने इच्छित से मिलाने का जतन करती है।
बात उलझती जा रही है। मुझे थोड़ा आसान करना होगा। इसे समझिए कि आपका चाहना और प्रकृति का चाहना एक ही बात है। इसे भले ही ऐसे मान लें कि जैसा प्रकृति चाहेगी वैसा ही आप चाहेंगे या जैसा आप चाहेंगे वैसा ही प्रकृति चाहेगी। या फिर दोनों ही बातें होती है, फर्क केवल इच्छाशक्ति का होता है। ओमेन आपकी या प्रकृति की इच्छा को समझने का विज्ञान है। अब ये संकेत कैसे मिलते हैं, कौन देता है, कितनी तीव्रता के होते हैं, कब मिलेंगे या क्या संकेत होंगे। इस बारे में कहीं भी स्पष्ट जानकारी नहीं है। बस संकेत होते हैं और इसे ग्रहण करने वाले होते हैं। उन्हें इंट्यूशनिस्ट या अंतर्ज्ञान प्राप्त कहा जाता है।
पाल बाबा और तोता भले ही इन संकेतों को समझने की क्षमता नहीं रखते हैं, लेकिन इनके आस पास के लोग इन्हें अपने अवचेतन से समझ पाते हैं। कुछ इन्हें व्यक्त कर देते हैं तो कुछ नहीं कर पाते। अंतर्ज्ञान प्राप्त व्यक्तियों के लिए यह कतिपय आसान होता है, लेकिन जिन लोगों के पास प्रकृति (इसमें सजीव और निर्जीव दोनों शामिल हैं) के प्रति संवेदनशीलता का अभाव होता है, वे इसे समझ नहीं पाते हैं।
अब बात ज्योतिषीय दृष्टिकोण की करते हैं। भद्रबाहु संहिता की एक टीका पंडित नेमीचंद शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने लिखी है। प्राचीन ग्रंथों का विशद संदर्भ देने वाले शास्त्रीजी ने प्राचीन भारतीय साहित्य (प्रमुख रूप से संस्कृत कथाओं) में संकेतों के माध्यम से वातावरण के जरिए निकट भविष्य के ईष्ट और अनिष्ट के बारे में संकेतों का उल्लेख किया है। उदाहरण के तौर पर “शत्रुओं के हमले की सूचना मिलने के बाद नगर के क्षत्रियों को शीशे में अपने सिर कटे हुए नजर आने लगे, पशुओं ने भोजन त्याग दिया, मयूर ने नृत्य करना छोड़ दिया, महिलाओं को जल में अपनी छवि विधवाओं जैसी दिखाई देने लगी।” ऐेसे सैकड़ों संकेत हैं। वे साहित्य के इस प्रयास के साथ प्राचीन भारत में संकेतों से भविष्य कथन का महत्व बताते हैं। भद्रबाहु संहिता में भी संकेतों के जरिए भविष्य को जानने के सूत्र बताए गए हैं। प्रश्न ज्योतिष में भी संकेतों का प्रबल महत्व है।
एक जातक ज्योतिषी के पास आता है, अपना सवाल पूछता है, उसके आने के तरीके, बैठने के तरीके, सवाल पूछने के दौरान ज्योतिषी का स्वर (इडा या पिंगला नाड़ी का चलना), जातक का स्वर, आस पास के माहौल में घट रही घटनाएं और प्राकृतिक घटनाएं सवाल का जवाब देना शुरू कर देती हैं।जातक जिस काल में प्रश्न करता है, उसी काल अवधि की कुण्डली बनाई जाती है।
संकेतों को उपचार बनाने की कोशिश
आपने सिकंदर या नेपोलियन के साथ जुड़ी वह कहानी सुनी होगी, जिसमें आक्रांता एक भविष्यवेत्ता (Astrologer) से पूछता है कि मेरा हाथ (Palm) देखकर बताओ कि क्या मैं राजा बन सकता हूं। जवाब में भविष्यवेत्ता कहता है कि तुम्हारी हाथ की लकीरों में एक लकीर की कमी है। ऐसे में तुम्हारा राजा (King) बनना संदेहास्पद है। इतना सुनते ही वह योद्धा अपने चाकू से अपने हाथ में लकीर खींच लेता है। अब भविष्यवेत्ता भी कहता है कि तुम्हें राजा बनने से कोई रोक नहीं सकता (तालियां)।बच्चों का उत्सावर्द्धन करने या भविष्य “वादकों” के चंगुल में फंसे व्यक्ति को यह बताना फायदेमंद हो सकता है। इससे उसे साइकोलॉजिकल (Psycological) सपोर्ट मिलेगा, लेकिन हकीकत इससे कुछ अलग है। वास्तव में इस कहानी में योद्धा क्या कर रहा है? वह प्रकृति से आए संकेतो को उपचार में बदलने का प्रयास कर रहा है। ज्योतिष के संकेत और ज्योतिष के उपचार दोनों अलग अलग बाते हैं। हम एक संकेत को बार बार इस्तेमाल कर उसे उपचार का रूप नहीं दे सकते।
यदि किसी के सिर के पिछले हिस्से में खल्वाट (गंजापन) हो तो उसके पैसे वाला या समृद्ध (Prosper) बनने की संभावनाएं बहुत अधिक होती हैं। अब यदि कोई लेजर (Laser) थैरेपी करवाकर सिर के उस हिस्से के बाल ही उड़ा दे तो, वह अमीर बनने का उपचार करने का प्रयास कर रहा है। बजाय कोमल संकेतों (Omen) को समझने के यह सिर पर पत्थर मारने जैसी हरकत है।
अगर किसी जातक के शरीर के दाहिने हिस्सों में जैसे गाल, हाथ, कंधा, बाजू, जांघ आदि पर तिल (Mole) हो तो वह शरीर के उस हिस्से से जुड़े कार्यों में अधिक दक्ष होता है। इसी को लेकर अगर कोई स्थाई टैटू गुदवा ले तो वह उन मामलों में दक्ष (Skilled) नहीं बन जाएगा।
किसी जातक के कान पर बाल हों तो उसे बड़ी मात्रा में धन की प्राप्ति होती है। अब कानों पर कम या अधिक बाल हर किसी के होते हैं। रोम तो हर इंसान के होते हैं। भले ही वे प्रथम दृष्टया दिखाई न दें, लेकिन होते हैं और महिलाओं के वैसे बाल कभी नहीं होते। ऐसे में यह तो नहीं कहा जाता कि महिलाओं को कभी धन की प्राप्ति नहीं होती और पुरुष हमेशा लाभ में रहते हैं। ऐसा नहीं है। पुरुषों के मामले में यह एक संकेत है। अगर कुण्डली (Horoscope) कह रही है कि धन प्राप्त होगा और कानों पर बाल भी दिखाई दे जाएं, तो दोनों मिलकर एक पुख्ता संकेत बनाते हैं।
जिस व्यक्ति के शरीर पर अधिक संख्या में बड़े काले और घने बाल होते हैं, उस व्यक्ति को जीवन में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अब यह संकेत के आधार पर निकाला गया निष्कर्ष (Conclusion) है। इस संकेत का दुरुपयोग कई प्रकार से होता है। पहले तो यह मान लिया जाता है कि जिस व्यक्ति के शरीर पर कम बाल होंगे वह भाग्यशाली (Fortunate) होगा, नहीं यह जरूरी नहीं है कि वह भाग्यशाली हो। वह जीवन में कम कष्ट उठाएगा और भाग्यशाली हो यह दोनों बातें साथ में होना जरूरी नहीं है।
कोई व्यक्ति अधिक श्रम ही न करे, अधिक प्रगति ही न करे और आराम से बैठा बैठा या जो नौकरी चल रही है, उसी में लो प्रोफाइल बना रहकर रिटायर हो और मर जाए तो भी वह अपने निजी स्तर पर सुखी जीवन जीता है। बस उसने संघर्ष नहीं किया है। इस कारण उसे बेहतरीन सफलताएं (Success) भी नहीं मिली हैं।
दूसरी ओर जिस व्यक्ति के संघर्ष लिखा है उसे सफलता नहीं मिलेगी, यह भी तय नहीं है। हम देखते हैं कई लोगों को कम मेहनत में सफलता मिल जाती है तो कई पहाड़ तोड़ने जितनी मेहनत करके भी उचित परिणाम हासिल नहीं कर पाते हैं। ऐसे में शरीर पर बाल होना यह तो तय कर देता है कि व्यक्ति को संघर्ष करना है। लेकिन वह जिंदगी में किन ऊंचाइयों को छुएगा यह उसकी बाकी की कुण्डली या सामुद्रिक (Samudrik) के बाकी संकेत बताएंगे।
सामुद्रिक शास्त्र के लोकमानस में भी ओमेन संकेतों को लेकर भी बहुत सी भ्रांतियां फैली हुई हैं। लेकिन एक ही बात बार बार दिखाई देती है कि जहां संकेत बताए गए हैं, उन संकेतों को उपचार बनाने का प्रयास किया जा रहा है। मसलन…
– घर से निकलते ही सुहागिन या मेहतर दिखने पर दिन शुभ जाना
अब किया यह जाता है कि सुहागिनों या मेहतर को जबरन आगे लाकर खड़ा किया जाता है, ताकि यात्रा का परिणाम बेहतर मिले।
– रास्ते में अर्थी दिखाई देने पर काम पूरा होना
अगर कोई जातक अपना रास्ता ही शमशान की ओर से होते हुए तय कर ले तो, यह उसके लिए रुटीन बन जाएगा, इससे उसे लाभ होना तय नहीं रहेगा।
– घर से निकलते ही छींक आना
कोई एलर्जी का मरीज है और उसे रोजाना छींक आती है तो यह संकेत नहीं बीमारी में शामिल किया जाएगा। दो पांच साल में एकाध छींक आए तो हम उसे संकेत की तरह ले सकते हैं।
– सामने से दूध आता दिखाई देना..
किसी का घर ही दूधवाले के पास हो तो, वह तो जिंदगी में कभी सफल ही नहीं हो पाएगा। ऐसा नहीं है। उसके लिए वह रुटीन है।
– काम के लिए रवाना होते समय किसी के द्वारा टोक दिया जाना।
कोई आप पर नजर रखे और मौका ताड़कर टोके, तो उसे टोकने में शामिल नहीं किया जाएगा। मैंने देखा है हमारे एक साथी थे, रात को ऑफिस से निकलते कोई वैसे ही पूछ लेता कि बंधू निकल रहे हो, और वे वहीं बैठ जाते। इस तरह अपनी सीट से मोटरसाइकिल तक पहुंचने में उन्हें आधा घंटा लग जाता। बाकी लोगों के लिए खेल था और उनके लिए परेशानी। अब समझने की बात यह है कि यह टोकना टोकना नहीं है, मखौल है। जिसे वे सज्जन खुद सीरियस ले रहे हैं।
ऐसे सैकड़ों संकेत हैं जो हमें रोजाना की जिंदगी में दिखाई देते हैं। अगर वे संकेत हमें किसी खास मनोदशा में खास अवसर पर, खास तरीके से दिखाई दें तो वे बहुत प्रबल संकेत के रूप में उभरकर सामने आते हैं। वहीं हम अगर उन संकेतों को उपचार बनाकर अपने काम कराना चाहें तो भूल जाइए।
आप भाग्य को देख सकते हैं, परिवर्तन के प्रति संवेदनशील और सहनशील हो सकते हैं, लेकिन भाग्य को धोखा नहीं दे सकते। ज्योतिष में भी अधिकांश उपचार इसी प्रकार हैं कि जब आप उपचार करते हैं तो पीछे हुई किसी चूक या भविष्य में संपादित की जाने वाली किसी योजना को अभी से अनुकूलतम प्रभाव में पूरा करने का प्रयास ही कर रहे होते हैं। कई बार यह प्रायश्चित रूप में होता है तो कई बार यह प्रोएक्टिव (proactive) रूप में होता है।
जब एक भविष्यवेत्ता आपका भविष्य भी बता रहा होता है तो वह उसी डिवाइन प्लान को ही पूरा कर रहा होता है जिसके तहत आपको भाग्य को भोगना है, मुझे आपका भाग्य बताना है, उपचार बताने हैं, आपके द्वारा उपचार किए जाने हैं या नहीं किए जाने हैं और परिणाम सामने आना है।